शाम ढली और तुम याद आए
तनहा और बेबस मै
बादलों से घिरे आसमा के नीचे
लगता है कि एक मुद्दत से
बैठा हूं इंतजार में
वही बेकरारी जो हुआ करती थी
कभी तुमसे मिलने से पहले
सीने में दबाए बैठा हूं
ख़्वाब जो देखे तुम्हारे
फिर से गरमाए
फिर से शाम ढली और तुम याद आए..
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