Wednesday, October 15, 2025

ख़्वाब ही ख़्वाब कब तलक देखूँ

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ख़्वाब ही ख़्वाब कब तलक देखूँ
काश तुझ को भी इक झलक देखूँ

चाँदनी का समाँ था और हम तुम
अब सितारे पलक पलक देखूँ

जाने तू किस का हम-सफ़र होगा
मैं तुझे अपनी जाँ तलक देखूँ

बंद क्यूँ ज़ात में रहूँ अपनी
मौज बन जाऊँ और छलक देखूँ

सुब्ह में देर है तो फिर इक बार
शब के रुख़्सार से ढलक देखूँ

उन के क़दमों तले फ़लक और मैं
सिर्फ़ पहनाई-ए-फ़लक देखूँ

उबैदुल्लाह अलीम

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