तिरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ए'तिबार होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
मिर्ज़ा ग़ालिब
वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था
दाग़ देहलवी
न कोई वा'दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था
फ़िराक़ गोरखपुरी
तिरे वा'दों पे कहाँ तक मिरा दिल फ़रेब खाए
कोई ऐसा कर बहाना मिरी आस टूट जाए
फ़ना निज़ामी कानपुरी
आदतन तुम ने कर दिए वादे
आदतन हम ने ए'तिबार किया
गुलज़ार
ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया
तमाम रात क़यामत का इंतिज़ार किया
दाग़ देहलवी
तेरी मजबूरियाँ दुरुस्त मगर
तू ने वादा किया था याद तो कर
नासिर काज़मी
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
क्यूँ पशेमाँ हो अगर वअ'दा वफ़ा हो न सका
कहीं वादे भी निभाने के लिए होते हैं
इबरत मछलीशहरी
अब तुम कभी न आओगे यानी कभी कभी
रुख़्सत करो मुझे कोई वादा किए बग़ैर
जौन एलिया
एक इक बात में सच्चाई है उस की लेकिन
अपने वादों से मुकर जाने को जी चाहता है
कफ़ील आज़र अमरोहवी
दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से
फिर तिरा वादा-ए-शब याद आया
नासिर काज़मी
ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
झूटी क़सम से आप का ईमान तो गया
दाग़ देहलवी
सुबूत है ये मोहब्बत की सादा-लौही का
जब उस ने वादा किया हम ने ए'तिबार किया
जोश मलीहाबादी
एक मुद्दत से न क़ासिद है न ख़त है न पयाम
अपने वा'दे को तो कर याद मुझे याद न कर
जलाल मानकपुरी
साफ़ इंकार अगर हो तो तसल्ली हो जाए
झूटे वादों से तिरे रंज सिवा होता है
क़ैसर हैदरी देहलवी
वो उम्मीद क्या जिस की हो इंतिहा
वो व'अदा नहीं जो वफ़ा हो गया
अल्ताफ़ हुसैन हाली
उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती
वा'दा न वफ़ा करते वा'दा तो किया होता
चराग़ हसन हसरत
तेरे वादे को कभी झूट नहीं समझूँगा
आज की रात भी दरवाज़ा खुला रक्खूँगा
शहरयार
किस मुँह से कह रहे हो हमें कुछ ग़रज़ नहीं
किस मुँह से तुम ने व'अदा किया था निबाह का
हफ़ीज़ जालंधरी
फिर बैठे बैठे वादा-ए-वस्ल उस ने कर लिया
फिर उठ खड़ा हुआ वही रोग इंतिज़ार का
अमीर मीनाई
मैं भी हैरान हूँ ऐ 'दाग़' कि ये बात है क्या
वादा वो करते हैं आता है तबस्सुम मुझ को
दाग़ देहलवी
मैं उस के वादे का अब भी यक़ीन करता हूँ
हज़ार बार जिसे आज़मा लिया मैं ने
मख़मूर सईदी
था व'अदा शाम का मगर आए वो रात को
मैं भी किवाड़ खोलने फ़ौरन नहीं गया
अनवर शऊर
वादा नहीं पयाम नहीं गुफ़्तुगू नहीं
हैरत है ऐ ख़ुदा मुझे क्यूँ इंतिज़ार है
लाला माधव राम जौहर
और कुछ देर सितारो ठहरो
उस का व'अदा है ज़रूर आएगा
एहसान दानिश
फिर चाहे तो न आना ओ आन बान वाले
झूटा ही वअ'दा कर ले सच्ची ज़बान वाले
आरज़ू लखनवी
बरसों हुए न तुम ने किया भूल कर भी याद
वादे की तरह हम भी फ़रामोश हो गए
जलील मानिकपूरी
आप तो मुँह फेर कर कहते हैं आने के लिए
वस्ल का वादा ज़रा आँखें मिला कर कीजिए
लाला माधव राम जौहर
जो तुम्हारी तरह तुम से कोई झूटे वादे करता
तुम्हीं मुंसिफ़ी से कह दो तुम्हें ए'तिबार होता
दाग़ देहलवी
आप ने झूटा व'अदा कर के
आज हमारी उम्र बढ़ा दी
कैफ़ भोपाली
उस के वादों से इतना तो साबित हुआ उस को थोड़ा सा पास-ए-तअल्लुक़ तो है
ये अलग बात है वो है वादा-शिकन ये भी कुछ कम नहीं उस ने वादे किए
आमिर उस्मानी
झूटे वादे भी नहीं करते आप
कोई जीने का सहारा ही नहीं
जलील मानिकपूरी
वो फिर वादा मिलने का करते हैं यानी
अभी कुछ दिनों हम को जीना पड़ेगा
आसी ग़ाज़ीपुरी
भूलने वाले को शायद याद वादा आ गया
मुझ को देखा मुस्कुराया ख़ुद-ब-ख़ुद शरमा गया
असर लखनवी
दिल कभी लाख ख़ुशामद पे भी राज़ी न हुआ
कभी इक झूटे ही वादे पे बहलते देखा
जलील मानिकपूरी
झूटे वादों पर थी अपनी ज़िंदगी
अब तो वो भी आसरा जाता रहा
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
सवाल-ए-वस्ल पर कुछ सोच कर उस ने कहा मुझ से
अभी वादा तो कर सकते नहीं हैं हम मगर देखो
बेख़ुद देहलवी
मान लेता हूँ तेरे वादे को
भूल जाता हूँ मैं कि तू है वही
जलील मानिकपूरी
वो और वा'दा वस्ल का क़ासिद नहीं नहीं
सच सच बता ये लफ़्ज़ उन्ही की ज़बाँ के हैं
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
तुझ को देखा तिरे वादे देखे
ऊँची दीवार के लम्बे साए
बाक़ी सिद्दीक़ी
साफ़ कह दीजिए वादा ही किया था किस ने
उज़्र क्या चाहिए झूटों के मुकरने के लिए
दाग़ देहलवी
वादा झूटा कर लिया चलिए तसल्ली हो गई
है ज़रा सी बात ख़ुश करना दिल-ए-नाशाद का
दाग़ देहलवी
इन वफ़ादारी के वादों को इलाही क्या हुआ
वो वफ़ाएँ करने वाले बेवफ़ा क्यूँ हो गए
अख़्तर शीरानी
वादा वो कर रहे हैं ज़रा लुत्फ़ देखिए
वादा ये कह रहा है न करना वफ़ा मुझे
जलील मानिकपूरी
बाज़ वादे किए नहीं जाते
फिर भी उन को निभाया जाता है
अंजुम ख़याली
मुझे है ए'तिबार-ए-वादा लेकिन
तुम्हें ख़ुद ए'तिबार आए न आए
अख़्तर शीरानी
बस एक बार ही तोड़ा जहाँ ने अहद-ए-वफ़ा
किसी से हम ने फिर अहद-ए-वफ़ा किया ही नहीं
इब्राहीम अश्क
कम-सिनी में तो हसीं अहद-ए-वफ़ा करते हैं
भूल जाते हैं मगर सब जो शबाब आता है
अनुराज़
आप की क़समों का और मुझ को यक़ीं
एक भी वादा कभी पूरा किया
शोख़ अमरोहवी
क़सम जब उस ने खाई हम ने ए'तिबार कर लिया
ज़रा सी देर ज़िंदगी को ख़ुश-गवार कर लिया
महशर इनायती
जल कर गिरा हूँ सूखे शजर से उड़ा नहीं
मैं ने वही किया जो तक़ाज़ा वफ़ा का था
अकबर हमीदी
बाँध कर अहद-ए-वफ़ा कोई गया है मुझ से
ऐ मिरी उम्र-ए-रवाँ और ज़रा आहिस्ता
अदीब सहारनपुरी
वा'दा किया है ग़ैर से और वो भी वस्ल का
कुल्ली करो हुज़ूर हुआ है दहन ख़राब
अहमद हुसैन माइल
मुझे कल के वादे पे करते हैं रुख़्सत
कोई वादा पूरा हुआ चाहता है
अल्ताफ़ हुसैन हाली
किया है आने का वादा तो उस ने
मेरे परवरदिगार आए न आए
अख़्तर शीरानी
देखिए अहद-ए-वफ़ा अच्छा नहीं
मरना जीना साथ का हो जाएगा
असद भोपाली
अब तो कर डालिए वफ़ा उस को
वो जो वादा उधार रहता है
इब्न-ए-मुफ़्ती
कहना क़ासिद कि उस के जीने का
वादा-ए-वस्ल पर मदार है आज
मर्दान अली खां राना
कोई वा'दा वो कर जो पूरा हो
कोई सिक्का वो दे कि जारी हो
जमीलुद्दीन आली
वो उन का व'अदा वो ईफ़ा-ए-अहद का आलम
कि याद भी नहीं आता है भूलता भी नहीं
अलम मुज़फ़्फ़र नगरी
हर टूटे हुए दिल की ढारस है तिरा वअ'दा
जुड़ते हैं इसी मय से दरके हुए पैमाने
आरज़ू लखनवी