लब़ ख़ुद-ब-ख़ुद मेरे मुस्काते जाते हैं,
जब से बंधे हैं, तुझ संग सात फेरों में।
गुज़री है जब- जब तुझ संग रातें मेरी,
उठने का मन नहीं करता अब सवेरों में।।
देखकर तेरी नाद़ानी के जलवे ''
मद़होश हो जाते हम तेरे इन रैन बसेरों में।
चूड़ियां मेरी छनकती जाती है ''
आग़ोश में तेरे, आ जाते जब अंधेरों में।।
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