ज़ख्म गहरा है मगर, भरेगा एक दिन।
बाग़ फिर गुलों से, सजेगा एक दिन।
साल हमको महीना, लगेगा एक दिन।
दर्द हर इक आँख से, बहेगा एक दिन।
ख़ामोश है ये वक्त मगर किसी रोज़,
चुपके से बहुत कुछ, कहेगा एक दिन।
ख़ुदा ख़ुद को समझने वाले से कहो,
हर इंसान मिट्टी में, मिलेगा एक दिन।
आदमी का दुश्मन कोई और नहीं है,
अपने ही हाथों, वो मरेगा एक दिन।
शबे गम गुज़ार दीं हमने ये सोचकर कि,
दयार-ए-दिल में प्यार, जगेगा एक दिन।
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