सबूतों की ज़रूरत पङ रही है
यानी रिश्तों मे दूरी बढ़ रही हैFriday, May 13, 2022
कोइ टूट गया है तेरे रूठ जाने से
बहुत उदास हे कोई तेरे जाने से
होसके तो लौट आ किसी बहाने से,
तू लाख खफा सही मगर एक बार तो देख ,
कोइ टूट गया है तेरे रूठ जाने से।
मोहबत के साथ या यादो के साथ !
उनका बादा भी अजीब था
बोले जिन्दगी भर साथ निभाएंगे ,
पर पागल हम थे - ये पूछना भूल ही गए के
मोहबत के साथ या यादो के साथ !
मै सही तुम गलत के खेल में
कुछ कह गए, कुछ सह गए,
कुछ कहते कहते रह गए.
मै सही तुम गलत के खेल में,
न जाने कितने रिश्ते ढह गए.
उनके दूर जाने के साथ आंखे नम थी
उनके दूर जाने के साथ आंखे नम थी
ज़िन्दगी उनसे शुरू उन पर खत्म थी
वो रूठ के दूर रहने लगे हमसे शायद
हमारी मोहब्बत में ही कमी थी
अभी वो हौसले वो यकीन बाकी हैं
कुछ दूरियां तो कुछ फासले बाकी हैं
अभी कुछ दूरियां तो कुछ फासले बाकी हैं
पल पल सिमटती शाम से कुछ रौशनी बाकी हैं
हमें यकीन है वो देखा हुआ कल आएगा ज़रूर,
अभी वो हौसले वो यकीन बाकी हैं
मीलों की दूरियां हैं और धड़कन करीब हैं
तेरा मेरा दिल का रिश्ता भी अजीब हैं,
मीलों की दूरियां हैं और धड़कन करीब हैं
तेरे हिस्से का वक्त आज भी तन्हा ही गुजरता हैं
माना कि दूरियां कुछ बढ़ सी गयी हैं लेकिन,
तेरे हिस्से का वक्त आज भी तन्हा ही गुजरता हैं
कौन चाहता हैं अपनों से दूर होना
वक्त नूर को बेनूर कर देता हैं,
छोटे से जख्म को नासूर कर देता हैं,
कौन चाहता हैं अपनों से दूर होना,
वक्त सबको मजबूर कर देता हैं
दूरियाँ बहुत हैं मगर इतना समझ लो
दूरियाँ बहुत हैं मगर इतना समझ लो,
पास रह कर ही कोई ख़ास नहीं होता,
तुम इस कदर पास हो मेरे दिल के,
मुझे दूरियों का एहसास नहीं होता
फितरत का बुरा तू भी नही, मैं भी नहीं.
गलतियों से जुदा तू भी नही, मैं भी नहीं,
दोनों इंसान हैं, ख़ुदा तू भी नही, मैं भी नहीं.
गलतफहमियों ने कर दी दोनो में पैदा दूरियां,
वरना फितरत का बुरा तू भी नही, मैं भी नहीं.
Wednesday, May 11, 2022
हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ!
हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ!
वही हाँ, वही जो युगों से गगन को
बिना कष्ट-श्रम के सम्हाले हुए हूँ;
हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ।
वही हाँ, वही जो धरा का बसंती
सुसंगीत मीठा गुँजाती फिरी हूँ;
हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ।
वही हाँ, वही जो सभी प्राणियों को
पिला प्रेम-आसव जिलाए हुए हूँ,
हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ।
क़सम रूप की है, क़सम प्रेम की है,
क़सम इस हृदय की, सुनो बात मेरी—
अनोखी हवा हूँ, बड़ी बावली हूँ!
बड़ी मस्तमौला, नहीं कुछ फ़िकर है,
बड़ी ही निडर हूँ, जिधर चाहती हूँ
उधर घूमती हूँ, मुसाफ़िर अजब हूँ!
न घर-बार मेरा, न उद्देश्य मेरा,
न इच्छा किसी की, न आशा किसी की,
न प्रेमी, न दुश्मन,
जिधर चाहती हूँ उधर घूमती हूँ!
हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ।
जहाँ से चली मैं जहाँ को गई मैं,
शहर, गाँव, बस्ती,
नदी, रेत, निर्जन, हरे खेत, पोखर,
झुलाती चली मैं, झुमाती चली मैं,
हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ।
चढ़ी पेड़ महुआ, थपाथप मचाया,
गिरी धम्म से फिर, चढ़ी आम ऊपर,
उसे भी झकोरा, किया कान में ‘कू’
उतर कर भगी मैं हरे खेत पहुँची—
वहाँ गेहुँओं में लहर ख़ूब मारी,
पहर दो पहर क्या, अनेकों पहर तक
इसी में रही मैं।
खड़ी देख अलसी लिए शीश कलसी,
मुझे ख़ूब सूझी!
हिलाया-झुलाया, गिरी पर न कलसी!
इसी हार को पा,
हिलाई न सरसों, झुलाई न सरसों,
मज़ा आ गया तब,
न सुध-बुध रही कुछ,
बसंती नवेली भरे गात में थी!
हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ!
मुझे देखते ही अरहरी लजायी,
मनाया-बनाया, न मानी, न मानी,
उसे भी न छोड़ा—
पथिक आ रहा था, उसी पर ढकेला,
लगी जा हृदय से, कमर से चिपक कर,
हँसी ज़ोर से मैं, हँसी सब दिशाएँ,
हँसे लहलहाते हरे खेत सारे,
हँसी चमचमाती भरी धूप प्यारी,
बसंती हवा में हँसी सृष्टि सारी!
हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ।
केदारनाथ अग्रवाल
Monday, May 9, 2022
ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते
ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते
जो आज तो होते हैं मगर कल नहीं होते
अंदर की फ़ज़ाओं के करिश्मे भी अजब हैं
मेंह टूट के बरसे भी तो बादल नहीं होते
कुछ मुश्किलें ऐसी हैं कि आसाँ नहीं होतीं
कुछ ऐसे मुअम्मे हैं कभी हल नहीं होते
शाइस्तगी-ए-ग़म के सबब आँखों के सहरा
नमनाक तो हो जाते हैं जल-थल नहीं होते
कैसे ही तलातुम हों मगर क़ुल्ज़ुम-ए-जाँ में
कुछ याद-जज़ीरे हैं कि ओझल नहीं होते
उश्शाक़ के मानिंद कई अहल-ए-हवस भी
पागल तो नज़र आते हैं पागल नहीं होते
सब ख़्वाहिशें पूरी हों 'फ़राज़' ऐसा नहीं है
जैसे कई अशआर मुकम्मल नहीं होते
Thursday, May 5, 2022
मुस्कुराहट पर कहे चुनिंदा शेर
मुश्किलों में मुस्कुराना सीखिए
फूल बंजर में उगाना सीखिए- नीरज गोस्वामी
कोई स्कूल की घंटी बजा दे
ये बच्चा मुस्कुराना चाहता है
- शकील जमाली
मुस्कुराहट है हुस्न का ज़ेवर
मुस्कुराना न भूल जाया करो
- अब्दुल हमीद अदम
न जाने हार है या जीत क्या है
ग़मों पर मुस्कुराना आ गया है
- सय्यद एहतिशाम हुसैनतड़प जाता हूँ जब बिजली चमकती देख लेता हूँ
कि इस से मिलता-जुलता सा किसी का मुस्कुराना है
- ग़ुलाम मुर्तज़ा कैफ़ काकोरी
हमें भी मुस्कुराना चाहिए था
मगर कोई बहाना चाहिए था
- आसिमा ताहिरहमें बर्बादियों पे मुस्कुराना ख़ूब आता है
अँधेरी रात में दीपक जलाना ख़ूब आता है
- चाँदनी पांडे
मौत भी गर देख ले तो जल मरे
ज़िंदगी यूँ मुस्कुराना चाहिए
- अशोक गोयल अशोकहादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें
ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें
- वसीम बरेलवी
मसाइब को छुपाना जानता है
ये लड़का मुस्कुराना जानता है
- आजिज़ कमाल राना