Friday, February 25, 2022

बर्फ़ जब पिघलती है उस की नर्म पलकों पर

धूप सात रंगों में फैलती है आँखों पर
बर्फ़ जब पिघलती है उस की नर्म पलकों पर

फिर बहार के साथी आ गए ठिकानों पर
सुर्ख़ सुर्ख़ घर निकले सब्ज़ सब्ज़ शाख़ों पर

जिस्म ओ जाँ से उतरेगी गर्द पिछले मौसम की
धो रही हैं सब चिड़ियाँ अपने पँख चश्मों पर

सारी रात सोते में मुस्कुरा रहा था वो
जैसे कोई सपना सा काँपता था होंटों पर

तितलियाँ पकड़ने में दूर तक निकल जाना
कितना अच्छा लगता है फूल जैसे बच्चों पर

लहर लहर किरनों को छेड़ कर गुज़रती है
चाँदनी उतरती है जब शरीर झरनों पर

परवीन शाकिर

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