Tuesday, February 15, 2022

दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना 
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना 

आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे 
ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे 

बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं 'ग़ालिब' 
कुछ तो है जिस की पर्दा-दारी है 
 
आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए 
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था 

रोने से और इश्क़ में बे-बाक हो गए 
धोए गए हम इतने कि बस पाक हो गए 

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