Tuesday, November 30, 2021

एक गली की बात थी और गली गली गयी

हालत-ए-हाल के सबब हालत-ए-हाल ही गई 
शौक़ में कुछ नहीं गया शौक़ की ज़िंदगी गई

एक ही हादसा तो है और वो यह के आज तक
बात नहीं कही गई बात नहीं सुनी गई

बाद भी तेरे जान-ए-जां दिल में रहा अजब समाँ
याद रही तेरी यां फिर तेरी याद भी गई

सैने ख्याल-ए-यार में की ना बसर शब्-ए-फिराक 
जबसे वो चांदना गया तबसे वो चांदनी गयी 

उसके बदन को दी नुमूद हमने सुखन में और फिर
उसके बदन के वास्ते एक कबा भी सी गयी

उसके उम्मीदे नाज़ का हमसे ये मान था की आप
उम्र गुज़ार दीजिये, उम्र गुज़ार दी गयी

उसके विसाल के लिए अपने कमाल के लिए
हालत-ए-दिल की थी खराब और खराब की गई

तेरा फिराक़ जान-ए-जां ऐश था क्या मेरे लिए
यानी तेरे फिराक़ में खूब शराब पी गई

उसकी गली से उठके मैं आन पड़ा था अपने घर
एक गली की बात थी और गली गली गयी

जौन एलिया

रंग आ जाते मुट्ठी में जुगनू बन कर...

जिस को मेरी हालत का एहसास नहीं, 
उस को दिल का हाल सुना कर रोना क्या.

इस तरह सताया है परेशान किया है, 
गोया कि मोहब्बत नहीं एहसान किया है.

दीवारों में दर होता तो अच्छा था, 
अपना कोई घर होता तो अच्छा था. 

ऐ मेरे मुसव्विर नहीं ये मैं तो नहीं हूँ,
ये तू ने बना डाली है तस्वीर कोई और.

रंग आ जाते मुट्ठी में जुगनू बन कर, 
ख़ुशबू का पैकर होता तो अच्छा था. 

अब अश्क तिरे रोक नहीं पाएँगे मुझ को, 
अब डाल मिरे पाँव में ज़ंजीर कोई और. 


अफ़ज़ाल फ़िरदौस


Sunday, November 28, 2021

इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो

ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो 
अब कोई ऐसा तरीक़ा भी निकालो यारो 

दर्द-ए-दिल वक़्त को पैग़ाम भी पहुँचाएगा 
इस कबूतर को ज़रा प्यार से पालो यारो 

लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे 
आज सय्याद को महफ़िल में बुला लो यारो 

आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे 
आज संदूक़ से वो ख़त तो निकालो यारो 

रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया 
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो 

कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता 
एक पत्थर तो तबीअ'त से उछालो यारो 

लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की 
तुम ने कह दी है तो कहने की सज़ा लो यारो

दुष्यंत कुमार 

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

कुछ तो मिरे पिंदार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ

पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ

किस किस को बताएंगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ

इक उम्र से हूं लज़्ज़त-ए-गिर्या से भी महरूम
ऐ राहत-ए-जां मुझ को रुलाने के लिए आ

अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आख़िरी शमाएं भी बुझाने के लिए आ

अहमद फ़राज़

Saturday, November 27, 2021

परवीन शाकिर - खुशबू और ख्वाब की शायरा

-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
उसने ख़ुशबू की तरह मेरी पज़ीराई की

वो कहीं भी गया लौटा तो मिरे पास आया
है यही बात तो अच्छी मिरे हरजाई की

कमाल-ए-ज़ब्त को मैं भी तो आज़माऊँगी
ख़ुद अपने हाथ से उसकी दुल्हन सजाऊँगी

हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
दो-घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं



सब्ज़ मद्धम रौशनी में सुर्ख़ आँचल की धनक
सर्द कमरे मचलती गर्म साँसों की महक
बाज़ुओं के सख़्त हलक़े में कोई नाज़ुक बदन
सिलवटें मलबूस पर आँचल भी कुछ ढलका हुआ
गर्मी-ए-रुख़्सार से दहकी हुई ठंडी हवा
नर्म ज़ुल्फ़ों से मुलाएम उंगलियों की छेड़-छाड़
सुर्ख़ होंटों पर शरारत के किसी लम्हे का अक्स
रेशमी बाँहों में चूड़ी की कभी मद्धम धनक
शर्मगीं लहजों में धीरे से कभी चाहत की बात
दो दिलों की धड़कनों में गूँजती थी इक सदा
काँपते होंटों पे थी अल्लाह से सिर्फ इक दुआ’
काश ये लम्हे ठहर जाएँ ठहर जाएँ ज़रा



ख़ुमार-ए-लज़्ज़त से एक पल को / जो आँखें चौंके / तो नीम-ख़्वाबीदा सर-ख़ुशी में / ग़ुरूर-ए-ताराजगी ने सोचा / ख़ुदा-ए-बरतर के क़हर से / आदम-ओ- हव्वा / बहिश्त से जब भी निकले होंगे / सुपुर्दगी की उसी इंतिहा पर होंगे / उसी तरह हम बदन और हम-ख़्वाब-ओ-हम-तमन्ना



हवा कुछ उसकी शब का भी अहवाल सुना
क्या वो अपनी छत पर आज अकेला था
या कोई मेरे जैसी साथी थी और उसने
चाँद को देख के उसका चेहरा देखा था



इतने अच्छे मौसम में
रूठना नहीं अच्छा
हार जीत की बातें
कल पे हम उठा रक्खें
आज दोस्ती कर लें



ख़ुश्बू बता रही है कि वो रास्ते में है
मौज-ए-हवा के हाथ में उसका सुराग़ है

नींद पर जाल से पड़ने लगे आवाज़ों के
और फिर होने लगी तेरी सदा आहिस्ता



मैं बर्ग बर्ग उसको नुमू बख़्शती रही
वो शाख़ शाख़ मेरी जड़ें काटता रहा



मैं उसकी दस्तरस में हूँ मगर वो
मुझे मेरी रज़ा से मांगता है

लड़कियों के दुख अजब होते हैं सुख उस से अजीब
हँस रही हैं और काजल भीगता है साथ साथ

परवीन शाकिर : चुनिंदा शेर


मिलते हुए दिलों के बीच और था फ़ैसला कोई
उस ने मगर बिछड़ते वक़्त और सवाल कर दिया 

हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा
क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा 

कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी
मैं अपने हाथ से उस की दुल्हन सजाऊँगी 


याद तो होंगी वो बातें तुझे अब भी लेकिन
शेल्फ़ में रक्खी हुई बंद किताबों की तरह 

शाम भी हो गई धुँदला गईं आँखें भी मिरी
भूलने वाले मैं कब तक तिरा रस्ता देखूँ 


मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा 

काँटों में घिरे फूल को चूम आएगी लेकिन
तितली के परों को कभी छिलते नहीं देखा 


बस ये हुआ कि उस ने तकल्लुफ़ से बात की
और हम ने रोते रोते दुपट्टे भिगो लिए 

कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए
पानी को अब तो सर से गुज़र जाना चाहिए

कल रात जो ईंधन के लिए कट के गिरा है
चिड़ियों को बड़ा प्यार था उस बूढ़े शजर से

Sunday, November 7, 2021

जब मैं प्रेम करता हूँ

जब मैं प्रेम करता हूँ अपने से 
अच्छा लगता है पानी का दरख़्त 
और मेरे भीतर से उछलकर कुछ बीज 
प्रवेश करते हैं शब्दों के भीतर 

जब मैं प्रेम करता हूँ तुमसे-सबसे 
अच्छी लगती है भरी-पूरी नदी 
और नक्षत्र-लोक से बरसती दुआएँ 
जोत जगाती हैं आँगन के दियों में 


जब हम प्रेम करते हैं पृथ्वी से 
आँखों में तैरते हैं सातों समुद्र 
और पुरखों के सपनों की पताकाएँ 
फहराने लगती हैं समय के आकाश में 

पानी का दरख़्त नदी में 
और नदी समुद्र में मिल जाती है 
फिर भी पूरी नहीं होती प्रेम की परिक्रमा 
क्षितिजों के पार कुछ ढूँढ़ती ही रहती हैं 
कवियों की आँखें।

चंद्रकांत देवताले की कविता

रोमांटिक शेर

दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं, 
कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं. 
- जिगर मुरादाबादी

इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी,. 
लोग तुझ को मिरा महबूब समझते होंगे
- बशीर बद्र

अपने जैसी कोई तस्वीर बनानी थी मुझे, 
मिरे अंदर से सभी रंग तुम्हारे निकले. 
- सालिम सलीम

यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का, 
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे. 
- जौन एलिया

तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे, 
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे. 
- क़ैसर-उल जाफ़री

मैं जब सो जाऊँ इन आँखों पे अपने होंट रख देना, 
यक़ीं आ जाएगा पलकों तले भी दिल धड़कता है. 
- बशीर बद्र