"सच्चाई के आईने काले हो गये,
बुजदिलों के घर मेँ उजाले हो गए,
झुठ बाजार मेँ बेखौफ बिकता रहा,
मैंने सच कहा तो जान के लाले हो गए"..
बुजदिलों के घर मेँ उजाले हो गए,
झुठ बाजार मेँ बेखौफ बिकता रहा,
मैंने सच कहा तो जान के लाले हो गए"..
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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