उनकी आँखों से काश कोई इशारा तो होता,
कुछ मेरे जिने का सहारा तो होता,
तोड देते हम हर रस्म जमाने की,
एक बार ही सही उसने पुकारा तो होता।
कुछ मेरे जिने का सहारा तो होता,
तोड देते हम हर रस्म जमाने की,
एक बार ही सही उसने पुकारा तो होता।
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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