आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
अब तो करम का हाथ बढ़ा दे ऐ अजीज़,
बड़ी मुद्दत हुई तेरे दर पे खड़े हुए।
तिनके तो रक्स करतें हैं तूफान की गोद में,
दरिया में डूबतें हैं सफीने भड़े हुए॥
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