Wednesday, October 10, 2012

Koshish

Tujhey Bhool Janey Ki Koshishen
Kabhi Kamyaab Na Ho Sakeen,
Teri Yaad Shakh-e-Gulaab Hai
Jo Hawa Chali Tou Mehak Uthi..!!

Friday, October 5, 2012

जरुरत

Aaj Har Ek Pal Khoobsurat Hai
Dil Me Mere Sirf Teri Surat Hai
Kuch Bhi Kahe Ye Duniya Gham Nahi
Duniya Se Jyada Mujhe Teri Zarurat Hai...

Friday, September 28, 2012

Khafa

तेरी दोस्ती हम इस तरह निभाएँगे,
तुम रोज़ खफा होना हम रोज़ मनाएँगे,
पर मान जाना मनाने से,
वरना यह भीगी पलकें ले के हम कहा जाएँगे..

Thursday, September 27, 2012

Deewangi

एक शीशे ने पत्थर से मोहब्बत कर ली,
टकरा के उसने अपनी ज़िंदगी चकना चूर कर ली.
शीशे की दीवानगी तो देखो,
उसने अपने हज़ार टुकड़ो मे भी उसकी तस्वीर भर ली.

Wednesday, September 26, 2012

Pyar ho jata hai..



Kyun kisi se itna pyar ho jata hai,
ek din jeena bhi dushwaar ho jata hai.
Lagne lagte hain apne bhi paraye,
aur ek ajnabi par itna aitbaar ho jata hai..

Friday, September 21, 2012

Betaab

बेताब से रहते हे तेरी याद मे अक्सर,
रात भर नहीं सोते तेरी याद मे अक्सर.
जिस्म में दर्द का बहाना सा बना के,
हम टूट क रोते हैं तेरी याद मे अक्सर..

Thursday, September 20, 2012

Raaj

एक टूटे हुए दिल की आवाज़ मुझे कहिए,
सुर जिसमें है सब गम के, वो साज़ मुझे कहिए.
मैं कौन हूँ और क्या हूँ, किसके लिए ज़िंदा हूँ;
मैं खुद भी नहीं समझा, वो राज़ मुझे कहिए..

Tuesday, September 18, 2012

Khata

खता हो गयी है तो सज़ा सुना दो,
दिल मे इतना दर्द क्यो है वजह बता दो.
देर हो गयी है याद करने मे ज़रूर लेकिन,
तुमको भुला देंगे ये ख्याल दिल से मिटा दो..

Sunday, September 16, 2012

Ishq

लोग इश्क़ करते है बड़े शोर के साथ,
हमने भी किया था बड़े ज़ोर के साथ!
मगर अब करेंगे ज़रा गौर के साथ,
क्योकि कल देखा था उसे किसी और के साथ!!

hum

दिल से रोए मगर होंठों  से मुस्कुरा बैठे,
यूँही हम किसी से वफ़ा निभा बैठे।
वो हमें एक लम्हा न दे पाए अपने प्यार का,
और हम उनके लिए अपनी ज़िंदगी गवाँ बैठे।।

Monday, September 10, 2012

umra bhar

Aapki dosti ki ek nazar chahiye,
Dil hai beghar usey ek ghar chahiye,
bas yuhin saath chalte raho e dost,
Yeh dosti humein umar bhar chahiye…

Saturday, September 8, 2012

teri yaad mein

तेरी याद में मैं जरा अपनी आँखे "भिंगो" लूँ ,
'उदास' रात की खामोश "तन्हाई" में सो लूँ ।
अकेले ग़मों का बोझ अब है "संभलता" नहीं ,
अगर तू मिल जाए तो तुझसे लिपट के रो लूँ ।।

Wednesday, September 5, 2012

raahat

अपने जज्बात को नाहक ही सजा देती हूँ,
शाम होते ही  चिरागों को बुझा देती हूँ।
जब मिलता ना राहत का बहाना कोई,
लिखकर हथेली पे नाम तेरा मिटा देती हूँ।।

Monday, September 3, 2012

आप भी

यादों में कभी आप भी खोये होंगे,
खुली आँखों से कभी आप भी रोये होंगे।
माना हँसना है आदत गम छुपाने की,
पर हँसते हुए कभी आप भी रोये होंगे॥
 

खुशियाँ


गम न कर जिंदगी बहुत बड़ी है,
चाहत की महफिल तेरे लिए सजी है।
बस एक बार मुस्कुरा कर तो देख,
खुशियाँ खुद तुमसे मिलने बाहर खड़ी है॥



Friday, August 31, 2012

dard

Zindgi ka har zakham uski meherbani hai.
Meri zindagi to ek adhuri kahani hai.
Mita dete har dard magar
Ye dard hi toh uski aakhiri nishani hai.

Bhanwar

प्यार किया था तो प्यार का अंजाम कहाँ मालूम था,
वफ़ा के बदले मिलेगी बेवफाई कहाँ मालूम था.
सोचा था तैर के पार कर लेंगे प्यार के दरिया को,
पर बीच दरिया मिल जायेगा भंवर कहाँ मालूम था..

Sunday, August 26, 2012

तलाश

रहने दे आसमान, जमीन की तलाश कर,
सब कुछ यहीं है, कहीं और न तलाश कर.
हर  ख्वाहिश पूरी हो तो जीने में क्या मजा,
जीने  के लिए बस एक खूबसूरत वजह की तलाश कर..

Saturday, August 25, 2012

अपनों को

जाने किस बात की मुझको सजा देता है,
मेरी हँसती हुई आँखों को रुला देता है।
एक मुद्दत से कोई खबर भी नहीं उसकी,
कोई इस तरह भी क्या अपनों को भुला देता है॥

Friday, August 10, 2012

शायर बना दिया..

आज फिर उसकी याद ने रुला दिया,

हमारी वफाओं का क्या खूब सिला दिया..

दो लफ्ज़ लिखने का सलीका न था,

किसी के प्यार ने हमें शायर बना दिया..


जिन्दगी से प्यारे..

तूफ़ान में कश्ती को किनारे मिल जातें हैं,
दुनिया  में लोगों को सहारे मिल जातें हैं.
 इस संसार में सबसे प्यारी है जिन्दगी,
और कुछ लोग जिन्दगी से भी प्यारे मिल जाते हैं..

विश्वास

विश्वास बनके लोग जिन्दगी में आतें हैं,
ख्वाब  बनके  आँखों  में  समा  जातें  हैं.
पहले  यकीन दिलातें हैं कि  वो हमारे हैं,
फिर   न   जाने   क्यों   बदल   जातें  हैं..

Friday, August 3, 2012

hum

तुम्हारी दुनिया से दूर चले जाने के बाद,
तुम्हें हम हर तारे में नज़र आया करेंगे.
तुम हर पल कोई दुआ मांग लिया करना,
और हम हर पल टूट जाया करेंगे..

Thursday, August 2, 2012

Main

Chaman Se Bichhda Hua Gulab Hoon,
Main Khud Apni Tabaahi Ka Jawaab Hoon..
Yoon Nigaahein Na Pher Mujhse Mere Sanam,
Main Teri Chahaton Mein Hi Hua Barbaad Hoon. ..

Monday, July 30, 2012

aapki or

रिश्तों की डोरी कमजोर होती है,
आँखों की बातें, दिल की चोर होती है।
किसी ने जब भी पुछा दोस्ती का मतलब,
हमारी ऊँगली आपकी ओर होती है।

adhura

Chand adhura hai sitaro ke bina,
Gulshan adhura hai baharon ke bina..
Samundar adhura hai kinaro ke bina,
Jeena adhura hai tum jaise yaaro ke bina....

Friday, July 27, 2012

Ishq

Ishq Wahi Hai Jo Ho Ektarfa,
Izhaar e Ishq To Khwahish Ban Jaati Hai,
Hai Agar Ishq To Aankho Mein Dekho ,
Zuban Kholne Se Ye Numaish Ban Jaati Hai..

gahri

गहरी थी रात मगर हम खोये नहीं,
दर्द बहुत था दिल में, मगर हम रोये नहीं।
कोई नहीं हमारा अपना, जो पूछता हमसे,
जाग रहे हो किसी के लिए,
या किसी के लिए सोये नहीं।

dosti

सोचा था न करेंगे किसी से दोस्ती,
न करेंगे किसी से वादा!
पर क्या करे दोस्त मिला इतना प्यारा,

कि करना पड़ा दोस्ती का वादा!

Thursday, July 26, 2012

ईशारा

तेरी आँखों से काश एक ईशारा तो होता,
थोड़ा ही सही जीने का सहारा तो होता।
तोड़ देते दुनिया की सारी हदों को हम,
तूने एक बार मोहब्बत से पुकारा तो होता॥

Wednesday, July 25, 2012

तुम्हें

तेरे नाम को होठों पे सजाया है मैंने,
तेरे रूह को दिल में बसाया है मैंने।
दुनिया तुम्हें ढूंढते ढूंढते हो जाएगी पागल,
दिल के ऐसे कोने में छुपाया है मैंने॥

Saturday, July 14, 2012

जख्म

इस   चाँद   से   चेहरे   पे   गम   अच्छे   नहीं   लगते।
कह  दो  हमसे  चले जाये,  जो हम अच्छे नहीं   लगते॥
अगर   हमें   जख्म   देना,   तो उम्र   भर   का  देना।
जो जख्म चंद दिनों में भर जाये वो जख्म अच्छे नहीं लगते॥

Friday, July 6, 2012

सरफ़रोशी की तमन्ना

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है


वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है


करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है


रहबरे राहे मुहब्बत, रह न जाना राह में
लज्जते-सेहरा न वर्दी दूरिए-मंजिल में है


अब न अगले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़
एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है ।


ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-कातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर,
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


हाथ जिन में हो जुनून कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से,
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न,
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम.
जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


यूँ खड़ा मकतल में कातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें कोई रोको ना आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून
तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है


-
रामप्रसाद बिस्मिल

Thursday, May 10, 2012

खुशबू

इतना टूटा हूँ कि छूने से बिखर जाऊँगा,
अब अगर और दुआ दोगे तो, मर जाऊँगा!
फूल रह जायेंगे, गुलदानों में यादों की नज़र,
मैं तो खुशबू हूँ, फिज़ाओं में बिखर जाऊँगा॥

मैं

आँखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा,
कश्ती के मुसाफ़िर ने समन्दर नहीं देखा |

पत्थर कहता है मुझे मेरा चाहनेवाला,
मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नहीं देखा ||

Sunday, April 22, 2012

हरी घास पर क्षण-भर : अज्ञेय की लंबी कविता

आओ बैठें
इसी ढाल की हरी घास पर।
माली-चौकीदारों का यह समय नहीं है,
और घास तो अधुनातन मानव-मन की भावना की तरह
सदा बिछी है... हरी, न्योतती, कोई आकर रौंदे।

आओ बैठो
तनिक और सटकर, कि हमारे बीच स्नेह-भर का व्यवधान रहे, बस
नहीं दरारें सभ्य शिष्ट जीवन की।

चाहे बोलो, चाहे धीरे-धीरे बोलो, स्वगत गुनगुनाओगे,
चाहे चुप रह जाओ...
हो प्रकृतस्थ : तनो मत कटी-छंटी उस बाड़ सरीखी,
नमो, खुल खिलो, सहज मिलो
अंत:स्मित, अंत:संयत हरी घास-सी

क्षणभर भुला सकें हम
नगरी की बेचैन बुदकती गड्ड-मड्ड अकुलाहट-
और मानें उसे पलायन,
क्षण-भर देख सकें आकाश, धरा, दूर्वा, मेघाली,
पौधे, लता दोलती, फूल, झरे पत्ते, ‍तितली-भुनगे,
फुनगी पर पूंछ उठाकर इतराती छोटी-सी चिडि़या-
और सहसा चोर कह उठे मन में-
प्रकृतिवाद है स्खलन
क्योंकि युग जनवादी है।

क्षणभर में हम रहें रहकर भी
सुनें गूंज भीतर के सूने सन्नाटे में किसी दूर सागर की लोल लहर की
जिसकी छाती की हम दोनों छोटी-सी सिहरन हैं-
जैसी सीपी सदा सुना करती है।

क्षण-भर लय हों- मैं भी, तुम भी,
और सिमटें सोच कि हमने
अपने से भी बड़ाकिसी भी अपर को क्यों माना!

क्षण-भर अनायास हम याद करें :
तिरती नाव नदी में,
धूलभरे पथ पर असाढ़ की भभक, झील में साथ तैरना,
हंसी अकारण खड़े महावट की छाया में,
वदन घाम से लाल, स्वेद से जमी अलक-लट,
चीड़ों का वन, साथ-साथ दुलकी चलते दो घोड़े,
गीली हवा नदी की, फूले नथुने, भराई सीटी स्टीमर की,
खंडहर, ग्रसित अंगुलियां, बांसे का मधु,
डाकिए के पैरों की चाप,
अधजानी बबूल की धूल मिली-सी गंध,
झरा रेशमशिरीष का, कविता के पद,
मसजिद के गुंबद के पीछे सूर्य डूबता धीरे-धीरे,
झरने के चमकीले पत्थर, मोर-मोरनी, घुंघरूं,
संथाली झुमूर का लंबा कसकभरा आलाप,
रेल का आह की तरह धीरे-धीरे खिंचना, लहरें,
आंधी-पानी,
नदी किनारे की रेती पर बित्ते-भर की छांह झाड़ की
अंगुल-अंगुल नाप-नापकर तोड़े तिनकों का समूह,
लू,
मौन।

याद कर सकें अनायास : और मानें
हम अतीत के शरणाथीं हैं;
स्मरण हमारा-जीवन के अनुभव का प्रत्यवलोकन-
हमें हीन बनावे प्रत्यभिमुख होने के पाप-बोध से।
आओ बैठो : क्षण-भर :
यह क्षण हमें मिला है नहीं नगर-सेठों की फैयाजी से।
हमें मिला है अपने जीवन की निधि से ब्याज सरीखा।

आओ बैठो : क्षण-भर तुम्हेंनिहारूं।
अपनी जानी एक-एक रेखा पहचानूं
चेहरे की, आंखों की-अंतर्मन की
और-हमारी साझे की अनगिन स्मृतियों की :
तुम्हें निहारूं,
झिझक हो कि निरखना दबी वासना की विकृति है!

धीरे-धीरे
धुंधले में चेहरे की रेखाएं मिट जाएं-
केवल नेत्र जगें : उतनी ही धीरे
हरी घास की पत्ती-पत्ती भी मिट जाए लिपट झाडि़यों के पैरों में
और झाडि़यां भी धुल जाएं क्षिति-रेखा के मसृण ध्वांत में,
केवल बना रहे विस्तार- हमारा बोध
मुक्ति का,
सीमाहीन खुलेपन का ही।

चलो, उठें अब,
अब तक हम थे बंधु सैर को आए...
(देखें हैं क्या कभी घास पर लोट-पोट होते सतभैये शोर मचाते?)
और रहे बैठे तो लोग कहेंगे
धुंधले में दुबके प्रेमी बैठे हैं।

...वह हम हों भी तो यह हरी घास ही जाने :
(जिसके खुले निमंत्रण के बल जग ने सदा उसे रौंदा है
और वह नहीं बोली),
नहीं सुनें हम वह नगरी के नागरिकों से
जिनकी भाषा में अतिशय चिकनाई है साबुन की
किंतु नहीं करुणा।

उठो, चलें प्रिय!

Saturday, April 14, 2012

कभी कभी

कुछ अपना होश न तुम्हारा ख्याल कभी,
यूँ ही गुजर गयी ज़िंदगी कभी कभी।
ऐ दोस्त हमने दर्दे मोहब्बत के बावजूद,
महसूस की है तेरी जरूरत कभी कभी।।

रक्स

अब तो करम का हाथ बढ़ा दे ऐ अजीज़,

बड़ी मुद्दत हुई तेरे दर पे खड़े हुए।

तिनके तो रक्स करतें हैं तूफान की गोद में,

दरिया में डूबतें हैं सफीने भड़े हुए॥