Thursday, October 23, 2025

दीवाली के दीप जलाएँ आ जाओ

दीवाली के दीप जलाएँ आ जाओ

रौशन रौशन गीत सुनाएँ आ जाओ
गोशे गोशे में तज़ईन-ओ-ज़ेबाई
साफ़ करें हर दिल की मैली अँगनाई
फ़ितरत ने भी मस्ती में ली अंगड़ाई
ख़ुशियों का संगीत सुनाएँ आ जाओ
दीवाली के दीप जलाएँ आ जाओ
रौशन रौशन गीत सुनाएँ आ जाओ
आशाओं की मंज़िल पर सब कॉमन हो
नफ़रत जाए प्यार की ज्योति रौशन हो
प्रेम नगर में चाहे दाव पे जीवन हो
भेद-भाव पे तीर चलाएँ आ जाओ
दीवाली के दीप जलाएँ आ जाओ
रौशन रौशन गीत सुनाएँ आ जाओ
रौशनियों के जाल भी कितने सुंदर हैं
दीपक मालाएँ घर घर का ज़ेवर हैं
फुल-झड़ियों जैसे चेहरों पर तेवर हैं
हर ज़ुल्मत को आज मिटाएँ आ जाओ
दीवाली के दीप जलाएँ आ जाओ
रौशन रौशन गीत सुनाएँ आ जाओ
हार चुके हर बाज़ी अब रावन वाले
लक्ष्मी की पूजा करते हैं धन वाले
अपनी दुनिया हम बेचारे मन वाले
आतिश-बाज़ी चमकाएँ आ जाओ
दीवाली के दीप जलाएँ आ जाओ
रौशन रौशन गीत सुनाएँ आ जाओ
सब के लिए ख़ुश-हाली का ये साल रहे
हर इंसाँ की क़िस्मत में ज़र माल रहे
न कोई अब इस धरती पर कंगाल रहे
हर क़िस्मत पर नूर बनाएँ आ जाओ
दीवाली के दीप जलाएँ आ जाओ
रौशन रौशन गीत सुनाएँ आ जाओ

अबरार किरतपुरी 

तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो जो मिले ख़्वाब में वो दौलत हो

तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो

जो मिले ख़्वाब में वो दौलत हो

मैं तुम्हारे ही दम से ज़िंदा हूँ
मर ही जाऊँ जो तुम से फ़ुर्सत हो

तुम हो ख़ुशबू के ख़्वाब की ख़ुशबू
और उतनी ही बे-मुरव्वत हो

तुम हो पहलू में पर क़रार नहीं
या'नी ऐसा है जैसे फ़ुर्क़त हो

तुम हो अंगड़ाई रंग-ओ-निकहत की
कैसे अंगड़ाई से शिकायत हो

किस तरह छोड़ दूँ तुम्हें जानाँ
तुम मिरी ज़िंदगी की आदत हो

किस लिए देखती हो आईना
तुम तो ख़ुद से भी ख़ूब-सूरत हो

दास्ताँ ख़त्म होने वाली है
तुम मिरी आख़री मोहब्बत हो

जौन एलिया

थोड़ा सा माहौल बनाना होता है

थोड़ा सा माहौल बनाना होता है

वर्ना किसी के साथ ज़माना होता है

सच्चा शेर सुनाने वाले ख़त्म हुए
अब तो ख़ाली खेल दिखाना होता है

आँसू पहली शर्त है इस समझौते की
ग़म तो साँसों का जुर्माना होता है

लाल-क़िले की दीवारों पर लिखवा दो
दिल सब से महफ़ूज़ ठिकाना होता है

दुनिया में भर-मार है नक़ली लोगों की
सौ में कोई एक दिवाना होता है

रात हमारे घर जल्दी आ जाया कर
हमें सवेरे काम पे जाना होता है

ऐसी कोई बात नहीं मायूसी की
सच में थोड़ा सा अफ़्साना होता है

सब की अपनी एक इकाई होती है
सब का अपना एक ज़माना होता है

हम ने तो उन को भी लुटते देखा है
जिन के चार-क़दम पर थाना होता है

आज बिछड़ते वक़्त मुझे मालूम हुआ
लोगों में एहसास का ख़ाना होता है

शकील जमाली

नाकामियों के ग़म में मिरा काम हो गया

 आग़ाज़-ए-इश्क़ उम्र का अंजाम हो गया

नाकामियों के ग़म में मिरा काम हो गया

तुम रोज़-ओ-शब जो दस्त-ब-दस्त-ए-अदू फिरे
मैं पाएमाल-ए-गर्दिश-ए-अय्याम हो गया

मेरा निशाँ मिटा तो मिटा पर ये रश्क है
विर्द-ए-ज़बान-ए-ख़ल्क़ तिरा नाम हो गया

दिल चाक चाक नग़्मा-ए-नाक़ूस ने किया
सब पारा पारा जामा-ए-एहराम हो गया

अब और ढूँडिए कोई जौलाँ-गह-ए-जुनूँ
सहरा ब-क़द्र-ए-वुसअत-यक-गाम हो गया

दिल पेच से न तुर्रा-ए-पुर-ख़म के छुट सका
बाला-रवी से मुर्ग़ तह-ए-दाम हो गया

और अपने हक़ में ता'न-ए-तग़ाफ़ुल ग़ज़ब हुआ
ग़ैरों से मुल्तफ़ित बुत-ए-ख़ुद-काम हो गया

तासीर-ए-जज़्बा क्या हो कि दिल इज़्तिराब में
तस्कीं-पज़ीर बोसा-ब-पैग़ाम हो गया

क्या अब भी मुझ पे फ़र्ज़ नहीं दोस्ती-ए-कुफ़्र
वो ज़िद से मेरी दुश्मन-ए-इस्लाम हो गया

अल्लाह-रे बोसा-ए-लब-ए-मय-गूँ की आरज़ू
मैं ख़ाक हो के दुर्द-ए-तह-ए-जाम हो गया

अब तक भी है नज़र तरफ़-ए-बाम-ए-माह-वश
मैं गरचे आफ़्ताब-ए-लब-ए-बाम हो गया

अब हर्फ़-ए-ना-सज़ा में भी उन को दरेग़ है
क्यूँ मुझ को ज़ौक़-ए-लज्ज़त-ए-दुश्नाम हो गया 

इस्माइल मेरठी

अब के बिछड़े हैं तो लगता है कि कुछ टूट गया

चाँदनी था कि ग़ज़ल था कि सबा था क्या था

मैं ने इक बार तिरा नाम सुना था क्या था

अब के बिछड़े हैं तो लगता है कि कुछ टूट गया
मेरा दिल था कि तिरा अहद-ए-वफ़ा था क्या था

ख़ुद-कुशी कर के भी बिस्तर से उठा हूँ ज़िंदा
मैं ने कल रात को जो ज़हर पिया था क्या था

तुम तो कहते थे ख़ुदा तुम से ख़फ़ा है 'क़ैसर'
डूबते वक़्त वो जो इक हाथ बढ़ा था क्या था

क़ैसर-उल जाफ़री


धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ

धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ


दिये से मिटेगा न मन का अंधेरा
धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ!

बहुत बार आई-गई यह दिवाली
मगर तम जहां था वहीं पर खड़ा है,
बहुत बार लौ जल-बुझी पर अभी तक
कफन रात का हर चमन पर पड़ा है,
न फिर सूर्य रूठे, न फिर स्वप्न टूटे
उषा को जगाओ, निशा को सुलाओ!
दिये से मिटेगा न मन का अंधेरा
धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ!

सृजन शान्ति के वास्ते है जरूरी
कि हर द्वार पर रोशनी गीत गाये
तभी मुक्ति का यज्ञ यह पूर्ण होगा,
कि जब प्यार तलावार से जीत जाये,
घृणा बढ रही है, अमा चढ़ रही है
मनुज को जिलाओ, दनुज को मिटाओ!
दिये से मिटेगा न मन का अंधेरा
धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ!

बड़े वेगमय पंख हैं रोशनी के
न वह बंद रहती किसी के भवन में,
किया क़ैद जिसने उसे शक्ति छल से
स्वयं उड़ गया वह धुंआ बन पवन में,
न मेरा-तुम्हारा सभी का प्रहर यह
इसे भी बुलाओ, उसे भी बुलाओ!
दिये से मिटेगा न मन का अंधेरा
धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ!

मगर चाहते तुम कि सारा उजाला
रहे दास बनकर सदा को तुम्हारा,
नहीं जानते फूस के गेह में पर
बुलाता सुबह किस तरह से अंगारा,
न फिर अग्नि कोई रचे रास इससे
सभी रो रहे आँसुओं को हंसाओ!
दिये से मिटेगा न मन का अंधेरा
धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ!

गोपालदास "नीरज" 

जिसे पा भी न सकूँ

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ

ढूँडने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ

डाल के ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा
कुछ ये मेहंदी नहीं मेरी कि छुपा भी न सकूँ

ज़ब्त कम-बख़्त ने याँ आ के गला घोंटा है
कि उसे हाल सुनाऊँ तो सुना भी न सकूँ

नक़्श-ए-पा देख तो लूँ लाख करूँगा सज्दे
सर मिरा अर्श नहीं है जो झुका भी न सकूँ

बेवफ़ा लिखते हैं वो अपने क़लम से मुझ को
ये वो क़िस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ

इस तरह सोए हैं सर रख के मिरे ज़ानू पर
अपनी सोई हुई क़िस्मत को जगा भी न सकूँ
अमीर मीनाई

सोचता हूँ के तुझे हाथ लगा कर देखूँ

 मोम के पास कभी आग को लाकर देखूँ

सोचता हूँ के तुझे हाथ लगा कर देखूँ

कभी चुपके से चला आऊँ तेरी खिलवत में
और तुझे तेरी निगाहों से बचा कर देखूँ

मैने देखा है ज़माने को शराबें पी कर
दम निकल जाये अगर होश में आकर देखूँ

दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है
सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगा कर देखूँ

तेरे बारे में सुना ये है के तू सूरज है
मैं ज़रा देर तेरे साये में आ कर देखूँ

याद आता है के पहले भी कई बार यूं ही
मैने सोचा था के मैं तुझको भुला कर देखूँ

राहत इन्दौरी

Wednesday, October 15, 2025

ख़्वाब ही ख़्वाब कब तलक देखूँ

 .

ख़्वाब ही ख़्वाब कब तलक देखूँ
काश तुझ को भी इक झलक देखूँ

चाँदनी का समाँ था और हम तुम
अब सितारे पलक पलक देखूँ

जाने तू किस का हम-सफ़र होगा
मैं तुझे अपनी जाँ तलक देखूँ

बंद क्यूँ ज़ात में रहूँ अपनी
मौज बन जाऊँ और छलक देखूँ

सुब्ह में देर है तो फिर इक बार
शब के रुख़्सार से ढलक देखूँ

उन के क़दमों तले फ़लक और मैं
सिर्फ़ पहनाई-ए-फ़लक देखूँ

उबैदुल्लाह अलीम