Sunday, July 27, 2025

मैं ने सोचा है रात-भर तुम को


मैं ने सोचा है रात-भर तुम को

काश हो जाए ये ख़बर तुम को

ज़िंदगी में कभी किसी को भी
मैं ने चाहा नहीं मगर तुम को

जानती हूँ कि तुम नहीं मौजूद
ढूँढती है मगर नज़र तुम को

तुम भी अफ़्सोस राह-रौ निकले
मैं तो समझी थी हम-सफ़र तुम को

मुझ में अब मैं नहीं रही बाक़ी
मैं ने चाहा है इस क़दर तुम को

अंबरीन हसीब अंबर

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