मेरे अरमाँ खामोश हैं मग़र अश्क़ शोर करते हैं
ख़ामोशी ओढ़े बैठी मैं और लहज़े जोर करते हैं
मेरे अश्क़ उसे बर्दाश्त नहीं क्या उसका इश्क़ हैं
सच में उसके लफ़्ज़ दिल पर असर घोर करते हैं
कितनी बार कहा हैं मेरी जान तू यूँ रोया ना कर
क्या कहें के तेरे अश्क़ कितना कमजोर करते हैं
पल-पल की घुटन,ठहरा दर्द,मरने पे आमादा मैं
ये बीते लम्हें मेरे जीना क्यूँ इतना कठोर करते हैं
कमरे की दिवारे बोल पड़ी हम ढह जाएंगी यारा
तेरे रात के अश्क़ हम पर असर घनघोर करते हैं
कृष्णा ये जो धीमा-धीमा रोज का दर्द हैं ज़हर हैं
मौत के दर पर हर रोज थोड़ी-थोड़ी ठोर करते हैं...
- कृष्णा शर्मा
Wednesday, November 27, 2024
मेरे अरमाँ खामोश हैं मग़र अश्क़ शोर करते हैं
Saturday, November 23, 2024
मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आएँगे
मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आएँगे
इस बूढ़े पीपल की छाया में सुस्ताने आएँगे
हौले-हौले पाँव हिलाओ जल सोया है छेड़ो मत
हम सब अपने-अपने दीपक यहीं सिराने आएँगे
थोड़ी आँच बची रहने दो थोड़ा धुआँ निकलने दो
तुम देखोगी इसी बहाने कई मुसाफ़िर आएँगे
उनको क्या मालूम निरूपित इस सिकता पर क्या बीती
वे आए तो यहाँ शँख सीपियाँ उठाने आएँगे
फिर अतीत के चक्रवात में दृष्टि न उलझा लेना तुम
अनगिन झोंके उन घटनाओं को दोहराने आएँगे
रह-रह आँखों में चुभती है पथ की निर्जन दोपहरी
आगे और बढ़े तो शायद दृश्य सुहाने आएँगे
मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता
हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आएँगे
हम क्यों बोलें इस आँधी में कई घरौंदे टूट गए
इन असफल निर्मितियों के शव कल पहचाने जाएँगे
हम इतिहास नहीं रच पाए इस पीड़ा में रहते हैं
अब जो धारायें पकड़ेंगे इसी मुहाने आएँगे
Dushyant Kumar
Friday, November 22, 2024
मैं तेरा हूँ मुझे अपना मानो तुम
तकदीर में लिखा है और क्या कहूँ
इतना दर्द सह लिया है और कितना सहूँ,
मेरी आवाज सुन मेरी फरियाद सुन
अब तुमसे दूर कैसे रहूँ।
सोचो समझो और जानो तुम
मैं तेरा हूँ मुझे अपना मानो तुम,
पुरानी बातों को तुम छोड़ दो
रुकावट की जंजीरों को तुम तोड़ दो
मुझे नही पता क्या होगा कल
फिर आज कैसे कहूँ ।
तस्वीर तेरी जो थी वो खो गयी
धीरे - धीरे तेरी यादें मुझसे दूर हो गयी
तुमको न देखूँ तो ऐसा लगता है
जैसे आंखों की धूमिल हो गयी
ऐसा नहीं कि कुछ न कहूँ पर
तुम बिन कुछ कैसे कहूँ।
Sunday, November 17, 2024
क़रीब उन के आने के दिन आ रहे हैं
नसीब आज़माने के दिन आ रहे हैं
क़रीब उन के आने के दिन आ रहे हैं
जो दिल से कहा है जो दिल से सुना है
सब उन को सुनाने के दिन आ रहे हैं
अभी से दिल ओ जाँ सर-ए-राह रख दो
कि लुटने लुटाने के दिन आ रहे हैं
टपकने लगी उन निगाहों से मस्ती
निगाहें चुराने के दिन आ रहे हैं
सबा फिर हमें पूछती फिर रही है
चमन को सजाने के दिन आ रहे हैं
चलो 'फ़ैज़' फिर से कहीं दिल लगाएँ
सुना है ठिकाने के दिन आ रहे हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Tuesday, November 12, 2024
शायद तुमको नहीं पता होगा
शायद तुमको भी नहीं पता होगा
कि तुम मेरे लिए क्या हो
एक खुशनुमा एहसास
बहुत खास
और एक प्यारी सी सज़ा हो
सज़ा भी वो जिसे पाने के लिए
हर गुनाह कबूल है
तुम एक प्यारी सी दुआ हो
मेरे हर मर्ज की दवा हो
मेरी बेचैनियों का
चैन हो तुम
मेरी बेसब्री का
सब्र हो तुम
मेरा उदास होना लाजमी है
अगर तुमसे बात ना हो
चाहे कुछ पल के लिए ही सही
गर तुमसे मुलाकात ना हो
दिन हो रात हो
ख्याल बस तुम्हारा ही होता है
जवाब एक नहीं हजारों होंगे
पर हर बार सवाल तुम्हारा ही होता है
मुझे साथ चाहिए तेरा
पर सात जन्मों का नहीं
हर जन्म का
हर दिन का
हर पल का
मैं वादा करता हूं तुझसे
बे इंतेहा मोहब्बत करूंगा तुझसे
कभी रोने नहीं दूंगा
तुझे कभी खोने नहीं दूंगा
तुम हमेशा मेरे दिल में रहोगी
एक प्यारा सा एहसास बनकर
बहुत खास बनकर....
Friday, November 8, 2024
किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
मुझ को एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
मेरे रुकते ही मिरी साँसें भी रुक जाएँगी
फ़ासले और बढ़ा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
ज़हर पीने की तो आदत थी ज़माने वालो
अब कोई और दवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
चलती राहों में यूँही आँख लगी है 'फ़ाकिर'
भीड़ लोगों की हटा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
सुदर्शन फ़ाकिर
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