Saturday, March 30, 2024

कहा जो हम ने

कहा जो हम ने ''हमें दर से क्यूँ उठाते हो''

कहा कि ''इस लिए तुम याँ जो ग़ुल मचाते हो''

कहा ''लड़ाते हो क्यूँ हम से ग़ैर को हमदम''
कहा कि ''तुम भी तो हम से निगह लड़ाते हो''

कहा जो हाल-ए-दिल अपना तो उस ने हँस हँस कर
कहा ''ग़लत है ये बातें जो तुम बनाते हो''

कहा ''जताते हो क्यूँ हम से रोज़ नाज़-ओ-अदा''
कहा कि ''तुम भी तो चाहत हमें जताते हो''

कहा कि ''अर्ज़ करें हम पे जो गुज़रता है?''
कहा ''ख़बर है हमें क्यूँ ज़बाँ पे लाते हो''

कहा कि ''रूठे हो क्यूँ हम से क्या सबब इस का''
कहा ''सबब है यही तुम जो दिल छुपाते हो''

कहा कि ''हम नहीं आने के याँ'' तो उस ने 'नज़ीर'
कहा कि ''सोचो तो क्या आप से तुम आते हो''

Nazeer Akbarabadi

मंज़िल दूर नहीं है

यह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है

थक कर बैठ गये क्या भाई मंज़िल दूर नहीं है

चिंगारी बन गयी लहू की बून्द गिरी जो पग से
चमक रहे पीछे मुड़ देखो चरण-चिन्ह जगमग से
शुरु हुई आराध्य भूमि यह क्लांत नहीं रे राही;
और नहीं तो पांव लगे हैं क्यों पड़ने डगमग से
बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर नहीं है
थक कर बैठ गये क्या भाई मंज़िल दूर नहीं है

अपनी हड्डी की मशाल से हृदय चीरते तम का,
सारी रात चले तुम दुख झेलते कुलिश निर्मम का।
एक खेप है शेष, किसी विध पार उसे कर जाओ;
वह देखो, उस पार चमकता है मन्दिर प्रियतम का।
आकर इतना पास फिरे, वह सच्चा शूर नहीं है;
थककर बैठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है।

दिशा दीप्त हो उठी प्राप्त कर पुण्य-प्रकाश तुम्हारा,
लिखा जा चुका अनल-अक्षरों में इतिहास तुम्हारा।
जिस मिट्टी ने लहू पिया, वह फूल खिलाएगी ही,
अम्बर पर घन बन छाएगा ही उच्छ्वास तुम्हारा।
और अधिक ले जांच, देवता इतना क्रूर नहीं है।
थककर बैठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है।

रामधारी सिंह दिनकर

Thursday, March 14, 2024

जब से बंधे हैं, तुझ संग सात फेरों में

 लब़ ख़ुद-ब-ख़ुद मेरे मुस्काते जाते हैं,

जब से बंधे हैं, तुझ संग सात फेरों में।

गुज़री है जब- जब तुझ संग रातें मेरी,
उठने का मन नहीं करता अब सवेरों में।।

देखकर तेरी नाद़ानी के जलवे ''
मद़होश हो जाते हम तेरे इन रैन बसेरों में।

चूड़ियां मेरी छनकती जाती है ''
आग़ोश में तेरे, आ जाते जब अंधेरों में।।

ज़ख्म गहरा है मगर, भरेगा एक दिन

 ज़ख्म गहरा है मगर, भरेगा एक दिन।

बाग़ फिर गुलों से, सजेगा एक दिन।

साल हमको महीना, लगेगा एक दिन।
दर्द हर इक आँख से, बहेगा एक दिन।

ख़ामोश है ये वक्त मगर किसी रोज़,
चुपके से बहुत कुछ, कहेगा एक दिन।

ख़ुदा ख़ुद को समझने वाले से कहो,
हर इंसान मिट्टी में, मिलेगा एक दिन।

आदमी का दुश्मन कोई और नहीं है,
अपने ही हाथों, वो मरेगा एक दिन।

शबे गम गुज़ार दीं हमने ये सोचकर कि,
दयार-ए-दिल में प्यार, जगेगा एक दिन।

Saturday, March 9, 2024

हमें भी नींद आ जाएगी हम भी सो ही जाएँगे

परेशाँ रात सारी है सितारो तुम तो सो जाओ

सुकूत-ए-मर्ग तारी है सितारो तुम तो सो जाओ

हँसो और हँसते हँसते डूबते जाओ ख़लाओं में
हमीं पे रात भारी है सितारो तुम तो सो जाओ

हमें तो आज की शब पौ फटे तक जागना होगा
यही क़िस्मत हमारी है सितारो तुम तो सो जाओ

तुम्हें क्या आज भी कोई अगर मिलने नहीं आया
ये बाज़ी हम ने हारी है सितारो तुम तो सो जाओ

कहे जाते हो रो रो कर हमारा हाल दुनिया से
ये कैसी राज़दारी है सितारो तुम तो सो जाओ

हमें भी नींद आ जाएगी हम भी सो ही जाएँगे
अभी कुछ बे-क़रारी है सितारो तुम तो सो जाओ

Qateel Shifai

Thursday, March 7, 2024

मैने भी सवाल ना पूछा

कर के बेचैन मुझे फिर मेरा हाल ना पूछा,

 उसने नजरें फेर ली मैने भी सवाल ना पूछा !