आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
उलझा रही है मुझको, यही कश्मकश आजकल! तू आ बसी है मुझमें, या मैं तुझमें कहीं खो गया हूँ? 😉
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