"वो सपनो की चादर
जो जिंदगी के थपेड़े खा कर
फट चुकी है,
नशे में ही सही...
उस चादर को सीते हैं...
चलो शराब पीते हैं"..
जो जिंदगी के थपेड़े खा कर
फट चुकी है,
नशे में ही सही...
उस चादर को सीते हैं...
चलो शराब पीते हैं"..
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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