बहुत दिनों के बाद खिड़कियां खोली हैं
ओ वासंती पवन हमारे घर आना।
जडे़ हुए थे ताले सारे कमरों में
धूल-भरे थे आले सारे कमरों में।
उलझन और तनावों के रेशों वाले
पुरे हुए थे जाले सारे कमरों में।
बहुत दिनों के बाद संकलें डोली हैं
ओ वासंती पवन हमारे घर आना।
एक थकन-सी थी नव भाव-तरंगों में
मौन उदासी थी वाचाल उमंगों में
लेकिन आज समर्पण की भाषा वाले
मोहक-मोहक प्यारे-प्यारे रंगों में
बहुत दिनों के बाद खुशबुएं घोली हैं
ओ वासंती पवन हमारे घर आना।
पतझर ही पतझर था मन के मधुवन में
गहरा सन्नाटा सा था अन्तर्मन में
लेकिन अब गीतों की स्वच्छ मुंडेरी पर
चिंतन की छत पर भावों के आंगन में
बहुत दिनों के बाद चिरइयां बोली हैं
ओ वासंती पवन हमारे घर आना।
- डॉ. कुंअर बेचैन
Sunday, July 24, 2011
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