आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
मेरे होठों के करीब है होंठ तेरे,ऐसे में शराफ़त का सवाल कहाँ,करने दे जी भर के गुस्ताखियाँकि अब इजाजत का सवाल कहाँ.
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