Saturday, December 31, 2022

अधरों पर मुस्कान ले, कहता है नव वर्ष

पलकों के तट चूमकर, कहे नयन-जलधार ।

बीते हैं पल दर्द के, हुआ नया भिनसार ।।

जीवन कहते हैं जिसे, है सुख-दुख का मेल ।
ख़ुशियाँ दो पल जो मिलें, लेकर दुख भी झेल ।।

अब खूँटी पर टाँग दे, नफ़रत-भरी कमीज़ ।
बोना है नव वर्ष में, मुस्कानों के बीज ।।

भाई ने परदेस से, किया बहिन को फोन ।
तेरी खुशियों से बड़ा, मेरा जग में कौन ।।

घर में या परदेस में ,सबसे मुझको प्यार ।
सबके आँगन में खिले, फूलों का संसार ।।

नए साल से हम कहें-कर लो दुआ कुबूल ।
माफ़ करें हर एक की, जो-जो खटकी भूल ।। 

मुड़-मुड़कर क्या देखना, पीछे उड़ती धूल ।
फूलों की खेती करो, हट जाएँगे शूल ।। 

अधरों पर मुस्कान ले, कहता है नव वर्ष ।
छोड़ उदासी को यहाँ, आ पहुँचा है हर्ष ।। 

जितनी खुद से है हमें ,जीवन की हर आस ।
उससे भी ज़्यादा हमें, तुम पर है विश्वास । 

जिसके मन में नेह है, सच्ची है हर साँस।
और मीत से प्यार है, वह पहले ही पास ।

तुम जैसे होंगे जहाँ ,इस धरती पर लोग ॥
स्वर्ग बनेगे घर -नगर , मिट जाएँगे सोग ॥

-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' 

Thursday, December 29, 2022

मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूँ पर कहता नहीं - दुष्यंत कुमार

आगे निकल गए हैं घिसटते हुए क़दम
राहों में रह गए हैं निशाँ और भी ख़राब 


माथे पे रख के हाथ बहुत सोचते हो तुम
गंगा क़सम बताओ हमें क्या है माजरा 


उन का कहीं जहाँ में ठिकाना नहीं रहा
हम को तो मिल गया है अदब में मक़ाम और 


जाने किस किस का ख़याल आया है
इस समुंदर में उबाल आया है 

एक बूढ़ा आदमी है मुल्क में या यूँ कहो
इस अँधेरी कोठरी में एक रौशन-दान है


मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूँ पर कहता नहीं
बोलना भी है मना सच बोलना तो दरकिनार 

एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी
ये अँधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है


यहाँ तक आते आते सूख जाती है कई नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा 

सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मिरा मक़्सद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए 


अब तो इस तालाब का पानी बदल दो
ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं 


दुष्यंत क़ुमार