मुमकिन नहीं कि शाम-ए-अलम की सहर न हो
- नरेश कुमार शाद
ख़्वाब होते हैं देखने के लिए
उन में जा कर मगर रहा न करो
- मुनीर नियाज़ी
पलकों से लिख रहा था तिरा नाम चाँद पर
- अज्ञात
नज़रों से नापता है समुंदर की वुसअतें
साहिल पे इक शख़्स अकेला खड़ा हुआ
- मोहम्मद अल्वी
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