आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
तुम्हें न सीख मिली दर्द को मिटाने की, मुझे न शक्ति मिली याद कर भुलाने की। तुम्हें है रोग अगर तीर ही चलाने का, मुझे नशा है चोट खाके मुस्कराने का ।।
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