Thursday, August 20, 2015

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Wednesday, July 8, 2015

सतपुड़ा के जंगल

भवानीप्रसाद मिश्र की लोकप्रिय रचना : सतपुड़ा के जंगल
सतपुड़ा के घने जंगल।
नींद में डूबे हुए से
ऊंघते अनमने जंगल।
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झाड ऊंचे और नीचे,
चुप खड़े हैं आंख मीचे,
घास चुप है, कास चुप है
मूक शाल, पलाश चुप है।
बन सके तो धंसो इनमें,
धंस न पाती हवा जिनमें,
सतपुड़ा के घने जंगल
ऊंघते अनमने जंगल।

सड़े पत्ते, गले पत्ते,
हरे पत्ते, जले पत्ते,
वन्य पथ को ढंक रहे-से
पंक-दल में पले पत्ते।
चलो इन पर चल सको तो,
दलो इनको दल सको तो,
ये घिनौने, घने जंगल
नींद में डूबे हुए से
ऊंघते अनमने जंगल।
अटपटी-उलझी लताएं,
डालियों को खींच खाएं,
पैर को पकड़ें अचानक,
प्राण को कस लें कपाएं।
सांप सी काली लताएं
बला की पाली लताएं
लताओं के बने जंगल
नींद में डूबे हुए से
ऊंघते अनमने जंगल।

मकड़ियों के जाल मुंह पर,
और सर के बाल मुंह पर
मच्छरों के दंश वाले,
दाग काले-लाल मुंह पर,
वात-झन्झा वहन करते,
चलो इतना सहन करते,
कष्ट से ये सने जंगल,
नींद में डूबे हुए से
ऊंघते अनमने जंगल।

अजगरों से भरे जंगल।
अगम, गति से परे जंगल
सात-सात पहाड़ वाले,
बड़े-छोटे झाड़ वाले,
शेर वाले बाघ वाले,
गरज और दहाड़ वाले,
कम्प से कनकने जंगल,
नींद में डूबे हुए से
ऊंघते अनमने जंगल।

इन वनों के खूब भीतर,
चार मुर्गे, चार तीतर
पालकर निश्चिंत बैठे,
विजनवन के बीच बैठे,
झोंपड़ी पर फूंस डाले
गोंड तगड़े और काले।
जब कि होली पास आती,
सरसराती घास गाती,
और महुए से लपकती,
मत्त करती बास आती,
गूंज उठते ढोल इनके,
गीत इनके, बोल इनके
सतपुड़ा के घने जंगल
नींद में डूबे हुए से
ऊंघते अनमने जंगल।

जागते अंगड़ाइयों में,
खोह-खड्डों खाइयों में,
घास पागल, कास पागल,
शाल और पलाश पागल,
लता पागल, वात पागल,
डाल पागल, पात पागल
मत्त मुर्गे और तीतर,
इन वनों के खूब भीतर।
क्षितिज तक फैला हुआ सा,
मृत्यु तक मैला हुआ सा,
क्षुब्ध, काली लहर वाला
मथित, उत्थित जहर वाला,
मेरु वाला, शेष वाला
शम्भू और सुरेश वाला
एक सागर जानते हो,
उसे कैसा मानते हो?
ठीक वैसे घने जंगल,
नींद में डूबे हुए से
ऊंघते अनमने जंगल।

धंसो इनमें डर नहीं है,
मौत का यह घर नहीं है,
उतरकर बहते अनेकों,
कल-कथा कहते अनेकों,
नदी, निर्झर और नाले,
इन वनों ने गोद पाले।
लाख पंछी सौ हिरन-दल,
चांद के कितने किरन दल,
झूमते बन-फूल, फलियां,
खिल रहीं अज्ञात कलियां,
हरित दूर्वा, रक्त किसलय,
पूत, पावन, पूर्ण रसमय
सतपुड़ा के घने जंगल,
लताओं के बने जंगल।


Friday, May 8, 2015

हकीक़त में प्यार

वो प्यार जो हकीक़त में प्यार होता है,

जिन्दगी में सिर्फ एक बार होता है.


निगाहें मिलते ही मिल जाए दिल से दिल,


इत्तिफाक़ ऐसा कहाँ बार बार होता है.. 


smile emoticon

Monday, May 4, 2015

अपने होठों पर सजाना चाहता हूँ

अपने होठों पर सजाना चाहता हूँ,

तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ.


थक गया हूँ याद करते करते तुम्हें,


अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ..

Sunday, May 3, 2015

हर इक बात को

कौन कहता है कि तुझे भूला रखा है,
तेरी यादों को कलेजे से लगा रखा है.
लब पे आहें भी नहीं, दिल में हसरत भी नहीं,
मैंने हर इक बात को सीने मैं छुपा रखा है..