Thursday, June 19, 2025

याद, यादें (शेर, शायरी) #तन्हा #भुला #तन्हाई #तन्हा

जब शाम का सूरज ढलता है,

एक दर्द सा दिल में पलता है.

तन्हाई बड़ी तड़पती है,

एक याद किसी की आती है. 

*

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो

न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए

बशीर बद्र

*

आप भी इतना समझ लो मुझको समझने के बाद,

आदमी मजबूर हो जाता है दिल आने के बाद.

आपके आने से पहले सब कुछ था याद मुझे,

याद फिर आएगा मुझे आपके जाने के बाद.

*

कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब

आज तुम याद बे-हिसाब आए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

*

उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो

धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है

राहत इंदौरी

*

एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें

और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी

*

अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँ

अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूँ

अनवर शऊर

*

शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास

दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं

फ़िराक़ गोरखपुरी

*

याद-ए-माज़ी 'अज़ाब है या-रब

छीन ले मुझ से हाफ़िज़ा मेरा

अख़्तर अंसारी

*

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है

हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है

हसरत मोहानी

*

दिल धड़कने का सबब याद आया

वो तिरी याद थी अब याद आया

नासिर काज़मी

*

क्या सितम है कि अब तिरी सूरत

ग़ौर करने पे याद आती है

जौन एलिया

*

आप के बा'द हर घड़ी हम ने

आप के साथ ही गुज़ारी है

गुलज़ार

*

हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को

क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया

साहिर लुधियानवी

*

नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आती

मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं

हसरत मोहानी

*

तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं

किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

*

आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैर

जिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे

अहमद फ़राज़

*

सोचता हूँ कि उस की याद आख़िर

अब किसे रात भर जगाती है

जौन एलिया

*

तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें

हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया

बहादुर शाह ज़फ़र

*

तसद्दुक़ इस करम के मैं कभी तन्हा नहीं रहता

कि जिस दिन तुम नहीं आते तुम्हारी याद आती है

जलील मानिकपूरी

*

वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे

तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था

दाग़ देहलवी

*

ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें

इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं

जाँ निसार अख़्तर

*

वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का

जो पिछली रात से याद आ रहा है

नासिर काज़मी

*

वही फिर मुझे याद आने लगे हैं

जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं

ख़ुमार बाराबंकवी

*

तुम भूल कर भी याद नहीं करते हो कभी

हम तो तुम्हारी याद में सब कुछ भुला चुके

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

*

दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया

जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया

जोश मलीहाबादी

*

ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त

वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में

फ़िराक़ गोरखपुरी

*

याद रखना ही मोहब्बत में नहीं है सब कुछ

भूल जाना भी बड़ी बात हुआ करती है

जमाल एहसानी

*

इस ज़िंदगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीब

इतना न याद आ कि तुझे भूल जाएँ हम

अहमद फ़राज़

*

उन का ज़िक्र उन की तमन्ना उन की याद

वक़्त कितना क़ीमती है आज कल

शकील बदायूनी

*

कुछ ख़बर है तुझे ओ चैन से सोने वाले

रात भर कौन तिरी याद में बेदार रहा

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

*

याद उसे इंतिहाई करते हैं

सो हम उस की बुराई करते हैं

जौन एलिया

*

अब तो हर बात याद रहती है

ग़ालिबन मैं किसी को भूल गया

जौन एलिया

*

याद उस की इतनी ख़ूब नहीं 'मीर' बाज़ आ

नादान फिर वो जी से भुलाया न जाएगा

मीर तक़ी मीर

*

''आप की याद आती रही रात भर''

चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

*

अब तो उन की याद भी आती नहीं

कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

*

जाते हो ख़ुदा-हाफ़िज़ हाँ इतनी गुज़ारिश है

जब याद हम आ जाएँ मिलने की दुआ करना

जलील मानिकपूरी

*

इक अजब हाल है कि अब उस को

याद करना भी बेवफ़ाई है

जौन एलिया

*

कोई वीरानी सी वीरानी है

दश्त को देख के घर याद आया

*

यूँ ही गर रोता रहा ग़ालिब तो ऐ अहल-ए-जहाँ

देखना इन बस्तियों को तुम कि वीरान हो गईं

*

गिर्या चाहे है ख़राबी मिरे काशाने की

दर-ओ-दीवार से टपके है बियाबाँ होना

*

वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो

वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो

मोमिन ख़ाँ मोमिन

*

चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह

मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है

हसरत मोहानी

*

जाते जाते आप इतना काम तो कीजे मिरा

याद का सारा सर-ओ-सामाँ जलाते जाइए

जौन एलिया

*

तुम से छुट कर भी तुम्हें भूलना आसान न था

तुम को ही याद किया तुम को भुलाने के लिए

निदा फ़ाज़ली

*

तुम्हारी याद में जीने की आरज़ू है अभी

कुछ अपना हाल सँभालूँ अगर इजाज़त हो

जौन एलिया

*

ज़रा सी बात सही तेरा याद आ जाना

ज़रा सी बात बहुत देर तक रुलाती थी

नासिर काज़मी

*

सुना है हमें वो भुलाने लगे हैं

तो क्या हम उन्हें याद आने लगे हैं

ख़ुमार बाराबंकवी

*

वो नहीं भूलता जहाँ जाऊँ

हाए मैं क्या करूँ कहाँ जाऊँ

इमाम बख़्श नासिख़

*

किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं

तो यूँ नहीं कि तुझे सोचता नहीं हूँ मैं

इफ़्तिख़ार मुग़ल

*

आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा

आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई

इक़बाल अशहर

*

दुनिया-ए-तसव्वुर हम आबाद नहीं करते

याद आते हो तुम ख़ुद ही हम याद नहीं करते

फ़ना निज़ामी कानपुरी

*

थक गया मैं करते करते याद तुझ को

अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ

क़तील शिफ़ाई

*

जिस को तुम भूल गए याद करे कौन उस को

जिस को तुम याद हो वो और किसे याद करे

जोश मलसियानी

*

यूँ बरसती हैं तसव्वुर में पुरानी यादें

जैसे बरसात की रिम-झिम में समाँ होता है

क़तील शिफ़ाई

*

याद आई है तो फिर टूट के याद आई है

कोई गुज़री हुई मंज़िल कोई भूली हुई दोस्त

अहमद फ़राज़

*

दिल है कि तिरी याद से ख़ाली नहीं रहता

शायद ही कभी मैं ने तुझे याद किया हो

ज़ेब ग़ौरी

*

कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे

कुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया था

मुनव्वर राना

*

हम ही में थी न कोई बात याद न तुम को आ सके

तुम ने हमें भुला दिया हम न तुम्हें भुला सके

हफ़ीज़ जालंधरी

*

तबीअत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तिरी यादों की चादर तान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी

*
इक सफ़ीना है तिरी याद अगर
इक समुंदर है मिरी तन्हाई
अहमद नदीम क़ासमी
*

जाने वाले कभी नहीं आते
जाने वालों की याद आती है
सिकंदर अली वज्द
*

कहाँ आ के रुकने थे रास्ते कहाँ मोड़ था उसे भूल जा
वो जो मिल गया उसे याद रख जो नहीं मिला उसे भूल जा
अमजद इस्लाम अमजद

*
इक याद की मौजूदगी सह भी नहीं सकते
ये बात किसी और से कह भी नहीं सकते
साक़ी फ़ारुक़ी

*
वो रातें चाँद के साथ गईं वो बातें चाँद के साथ गईं
अब सुख के सपने क्या देखें जब दुख का सूरज सर पर हो
इब्न-ए-इंशा

*
तुम्हारा नाम आया और हम तकने लगे रस्ता
तुम्हारी याद आई और खिड़की खोल दी हम ने
मुनव्वर राना

*

उन का ग़म उन का तसव्वुर उन की याद

कट रही है ज़िंदगी आराम से

महशर इनायती

*

ज़िंदगी क्या हुए वो अपने ज़माने वाले

याद आते हैं बहुत दिल को दुखाने वाले

अख़्तर सईद ख़ान

*

इस क़दर रोया हूँ तेरी याद में

आईने आँखों के धुँदले हो गए

नासिर काज़मी

*

याद आई वो पहली बारिश

जब तुझे एक नज़र देखा था

नासिर काज़मी

*

जब तुझे याद कर लिया सुब्ह महक महक उठी

जब तिरा ग़म जगा लिया रात मचल मचल गई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

*

हम उसे याद बहुत आएँगे

जब उसे भी कोई ठुकराएगा

क़तील शिफ़ाई

*

कितने नादाँ हैं तिरे भूलने वाले कि तुझे

याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे

अहमद फ़राज़

*

दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद

अब मुझ को नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद

जिगर मुरादाबादी

*

ये हक़ीक़त है कि अहबाब को हम

याद ही कब थे जो अब याद नहीं

नासिर काज़मी

*

यूँही दिल ने चाहा था रोना-रुलाना

तिरी याद तो बन गई इक बहाना

साहिर लुधियानवी

*

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी

लोग बे-वज्ह उदासी का सबब पूछेंगे

कफ़ील आज़र अमरोहवी

*

जिस तरह लोग ख़सारे में बहुत सोचते हैं

आज कल हम तिरे बारे में बहुत सोचते हैं

इक़बाल कौसर

*

तन्हाइयाँ तुम्हारा पता पूछती रहीं

शब-भर तुम्हारी याद ने सोने नहीं दिया

अज्ञात

*

दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से

फिर तिरा वादा-ए-शब याद आया

नासिर काज़मी

*

दिल में इक दर्द उठा आँखों में आँसू भर आए

बैठे बैठे हमें क्या जानिए क्या याद आया

वज़ीर अली सबा लखनवी

*

अब उस की शक्ल भी मुश्किल से याद आती है

वो जिस के नाम से होते न थे जुदा मिरे लब

अहमद मुश्ताक़

*

दुनिया में हैं काम बहुत

मुझ को इतना याद न आ

हफ़ीज़ होशियारपुरी

*

भुलाई नहीं जा सकेंगी ये बातें

तुम्हें याद आएँगे हम याद रखना

हफ़ीज़ जालंधरी

*

आप की याद आती रही रात भर

चश्म-ए-नम मुस्कुराती रही रात भर

मख़दूम मुहिउद्दीन

*

आ गई याद शाम ढलते ही

बुझ गया दिल चराग़ जलते ही

मुनीर नियाज़ी

*

कुछ खटकता तो है पहलू में मिरे रह रह कर

अब ख़ुदा जाने तिरी याद है या दिल मेरा

जिगर मुरादाबादी

*

याद करने पे भी दोस्त आए न याद

दोस्तों के करम याद आते रहे

ख़ुमार बाराबंकवी

*

हम भूल सके हैं न तुझे भूल सकेंगे

तू याद रहेगा हमें हाँ याद रहेगा

इब्न-ए-इंशा

*

उस ने गोया मुझी को याद रखा

मैं भी गोया उसी को भूल गया

जौन एलिया

*

सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं

ख़ाक में क्या सूरतें होंगी कि पिन्हाँ हो गईं

मिर्ज़ा ग़ालिब

*

गुज़र जाएँगे जब दिन गुज़रे आलम याद आएँगे

हमें तुम याद आओगे तुम्हें हम याद आएँगे

कलीम आजिज़

*

कभी हम में तुम में भी चाह थी कभी हम से तुम से भी राह थी

कभी हम भी तुम भी थे आश्ना तुम्हें याद हो कि न याद हो

मोमिन ख़ाँ मोमिन

*

ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में

तिरी याद आँखें दुखाने लगी

आदिल मंसूरी

*

'अमीर' अब हिचकियाँ आने लगी हैं

कहीं मैं याद फ़रमाया गया हूँ

अमीर मीनाई

*

ख़्वाबों पर इख़्तियार न यादों पे ज़ोर है

कब ज़िंदगी गुज़ारी है अपने हिसाब में

फ़ातिमा हसन

*

गोया तुम्हारी याद ही मेरा इलाज है

होता है पहरों ज़िक्र तुम्हारा तबीब से

आग़ा हश्र काश्मीरी

*

कौन उठाएगा तुम्हारी ये जफ़ा मेरे बाद

याद आएगी बहुत मेरी वफ़ा मेरे बाद

अमीर मीनाई

*

भूल गई वो शक्ल भी आख़िर

कब तक याद कोई रहता है

अहमद मुश्ताक़

*

तुझ से मिलने की तमन्ना भी बहुत है लेकिन

आने जाने में किराया भी बहुत लगता है

राहत इंदौरी

*

हाँ उन्हीं लोगों से दुनिया में शिकायत है हमें

हाँ वही लोग जो अक्सर हमें याद आए हैं

राही मासूम रज़ा

*

ज़िंदगी यूँ भी गुज़र ही जाती

क्यूँ तिरा राहगुज़र याद आया

मिर्ज़ा ग़ालिब

*

तुम्हें याद ही न आऊँ ये है और बात वर्ना

मैं नहीं हूँ दूर इतना कि सलाम तक न पहुँचे

कलीम आजिज़

*

मुझे याद करने से ये मुद्दआ था

निकल जाए दम हिचकियाँ आते आते

दाग़ देहलवी

*

जिस में हो याद भी तिरी शामिल

हाए उस बे-ख़ुदी को क्या कहिए

फ़िराक़ गोरखपुरी

*

कुछ लोग ख़यालों से चले जाएँ तो सोएँ

बीते हुए दिन रात न याद आएँ तो सोएँ

हबीब जालिब

*

इतनी सारी यादों के होते भी जब दिल में

वीरानी होती है तो हैरानी होती है

अफ़ज़ल ख़ान

*

वही आँखों में और आँखों से पोशीदा भी रहता है

मिरी यादों में इक भूला हुआ चेहरा भी रहता है

साक़ी फ़ारुक़ी

*

दिन भर तो मैं दुनिया के धंदों में खोया रहा

जब दीवारों से धूप ढली तुम याद आए

नासिर काज़मी

*

भुलाना हमारा मुबारक मुबारक

मगर शर्त ये है न याद आईएगा

जिगर मुरादाबादी

*

ढलेगी शाम जहाँ कुछ नज़र न आएगा

फिर इस के ब'अद बहुत याद घर की आएगी

राजेन्द्र मनचंदा बानी

*

मैं जाता हूँ दिल को तिरे पास छोड़े

मिरी याद तुझ को दिलाता रहेगा

ख़्वाजा मीर दर्द

*

यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं

सोंधी सोंधी लगती है तब माज़ी की रुस्वाई भी

गुलज़ार

*

यूँ तिरी याद में दिन रात मगन रहता हूँ

दिल धड़कना तिरे क़दमों की सदा लगता है

शहज़ाद अहमद

*

हसीन यादों के चाँद को अलविदा'अ कह कर

मैं अपने घर के अँधेरे कमरों में लौट आया

हसन अब्बासी

*

आहटें सुन रहा हूँ यादों की

आज भी अपने इंतिज़ार में गुम

रसा चुग़ताई

*

गुम रहा हूँ तिरे ख़यालों में

तुझ को आवाज़ उम्र भर दी है

अहमद मुश्ताक़

*

मय-ख़ाने में क्यूँ याद-ए-ख़ुदा होती है अक्सर

मस्जिद में तो ज़िक्र-ए-मय-ओ-मीना नहीं होता

रियाज़ ख़ैराबादी

*

किस मुँह से करें उन के तग़ाफ़ुल की शिकायत

ख़ुद हम को मोहब्बत का सबक़ याद नहीं है

हफ़ीज़ बनारसी

*

याद आते हैं मोजज़े अपने

और उस के बदन का जादू भी

जौन एलिया

*

बचपन में हम ही थे या था और कोई

वहशत सी होने लगती है यादों से

अब्दुल अहद साज़

*

तुझे कुछ इश्क़ ओ उल्फ़त के सिवा भी याद है ऐ दिल

सुनाए जा रहा है एक ही अफ़्साना बरसों से

अब्दुल मजीद सालिक

*

रफ़्ता रफ़्ता सब तस्वीरें धुँदली होने लगती हैं

कितने चेहरे एक पुराने एल्बम में मर जाते हैं

ख़ुशबीर सिंह शाद

*

कहीं ये अपनी मोहब्बत की इंतिहा तो नहीं

बहुत दिनों से तिरी याद भी नहीं आई

अहमद राही

*

इस जुदाई में तुम अंदर से बिखर जाओगे

किसी मा'ज़ूर को देखोगे तो याद आऊँगा

वसी शाह

*

खींच लेना वो मिरा पर्दे का कोना दफ़अतन

और दुपट्टे से तिरा वो मुँह छुपाना याद है

हसरत मोहानी

*

फिर और तग़ाफ़ुल का सबब क्या है ख़ुदाया

मैं याद न आऊँ उन्हें मुमकिन ही नहीं है

हसरत मोहानी

*

हाए वो लोग जो देखे भी नहीं

याद आएँ तो रुला देते हैं

मोहम्मद अल्वी

*

मैं बहुत ख़ुश था कड़ी धूप के सन्नाटे में

क्यूँ तिरी याद का बादल मिरे सर पर आया

अहमद मुश्ताक़

*

आई जब उन की याद तो आती चली गई

हर नक़्श-ए-मा-सिवा को मिटाती चली गई

जिगर मुरादाबादी

*

हक़ीक़त खुल गई 'हसरत' तिरे तर्क-ए-मोहब्बत की

तुझे तो अब वो पहले से भी बढ़ कर याद आते हैं

हसरत मोहानी

*

इक ख़्वाब ही तो था जो फ़रामोश हो गया

इक याद ही तो थी जो भुला दी गई तो क्या

इफ़्तिख़ार आरिफ़

*

आती है बात बात मुझे बार बार याद

कहता हूँ दौड़ दौड़ के क़ासिद से राह में

दाग़ देहलवी

*

मिरी नज़र में वही मोहनी सी मूरत है

ये रात हिज्र की है फिर भी ख़ूब-सूरत है

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

*

शाम पड़ते ही किसी शख़्स की याद

कूचा-ए-जाँ में सदा करती है

परवीन शाकिर

*

वो सर्दियों की धूप की तरह ग़ुरूब हो गया

लिपट रही है याद जिस्म से लिहाफ़ की तरह

मुसव्विर सब्ज़वारी

*

आते आते आएगा उन को ख़याल

जाते जाते बे-ख़याली जाएगी

जलील मानिकपूरी

*

याद में तेरी जहाँ को भूलता जाता हूँ मैं

भूलने वाले कभी तुझ को भी याद आता हूँ मैं

आग़ा हश्र काश्मीरी

*

वही दिन है हमारी ईद का दिन

जो तिरी याद में गुज़रता है

मौलाना मोहम्मद अली जौहर

*

उठा लाया हूँ सारे ख़्वाब अपने

तिरी यादों के बोसीदा मकाँ से

रसा चुग़ताई

*

कुछ इस तरह से याद आते रहे हो

कि अब भूल जाने को जी चाहता है

अख़्तर शीरानी

*

उदास शाम की यादों भरी सुलगती हवा

हमें फिर आज पुराने दयार ले आई

राजेन्द्र मनचंदा बानी

*

जिन की यादों से रौशन हैं मेरी आँखें

दिल कहता है उन को भी मैं याद आता हूँ

हबीब जालिब

*

मेरे क़ाबू में न पहरों दिल-ए-नाशाद आया

वो मिरा भूलने वाला जो मुझे याद आया

दाग़ देहलवी

*

वो दिन गए कि 'दाग़' थी हर दम बुतों की याद

पढ़ते हैं पाँच वक़्त की अब तो नमाज़ हम

दाग़ देहलवी

*

भुला बैठे हो हम को आज लेकिन ये समझ लेना

बहुत पछताओगे जिस वक़्त हम कल याद आएँगे

अख़्तर शीरानी

*

जिस रोज़ किसी और पे बेदाद करोगे

ये याद रहे हम को बहुत याद करोगे

मोहम्मद रफ़ी सौदा

*

इक वही शख़्स मुझ को याद रहा

जिस को समझा था भूल जाऊँगा

सलमान अख़्तर

*

रुलाएगी मिरी याद उन को मुद्दतों साहब

करेंगे बज़्म में महसूस जब कमी मेरी

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

*

याद कर के और भी तकलीफ़ होती थी 'अदीम'

भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा न था

अदीम हाशमी

*

उस को भूले तो हुए हो 'फ़ानी'

क्या करोगे वो अगर याद आया

फ़ानी बदायुनी

*

तू याद आया तिरे जौर-ओ-सितम लेकिन न याद आए

मोहब्बत में ये मा'सूमी बड़ी मुश्किल से आती है

फ़िराक़ गोरखपुरी

*

ये किस अज़ाब में छोड़ा है तू ने इस दिल को

सुकून याद में तेरी न भूलने में क़रार

शोहरत बुख़ारी

*

रश्क से नाम नहीं लेते कि सुन ले न कोई

दिल ही दिल में उसे हम याद किया करते हैं

इमाम बख़्श नासिख़

*

हम अपने रफ़्तगाँ को याद रखना चाहते हैं

दिलों को दर्द से आबाद रखना चाहते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

*

हमें याद रखना हमें याद करना

अगर कोई ताज़ा सितम याद आए

हफ़ीज़ जौनपुरी

*

मौसम-ए-याद यूँ उजलत में न वारे जाएँ

हम वो लम्हे हैं जो फ़ुर्सत से गुज़ारे जाएँ

कुलदीप कुमार

*

तुम जिसे याद करो फिर उसे क्या याद रहे

न ख़ुदाई की हो परवा न ख़ुदा याद रहे

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

*

रात तेरी यादों ने दिल को इस तरह छेड़ा

जैसे कोई चुटकी ले नर्म नर्म गालों में

बशीर बद्र

*

आज क्या लौटते लम्हात मयस्सर आए

याद तुम अपनी इनायात से बढ़ कर आए

राजेन्द्र मनचंदा बानी

*

तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए

मैं ज़हर खा रही थी कि तुम याद गए

अंजुम रहबर

*

तुझ को भी क्यूँ याद रखा

सोच के अब पछताते हैं

आशुफ़्ता चंगेज़ी

*

मौसम-ए-गुल हमें जब याद आया

जितना ग़म भूले थे सब याद आया

कलीम आजिज़

*

इक तिरी याद से इक तेरे तसव्वुर से हमें

आ गए याद कई नाम हसीनाओं के

हबीब जालिब

*

मैं सोचता हूँ मगर याद कुछ नहीं आता

कि इख़्तिताम कहाँ ख़्वाब के सफ़र का हुआ

शहरयार

*

यूँ जी बहल गया है तिरी याद से मगर

तेरा ख़याल तेरे बराबर न हो सका

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

*

दिल से ख़याल-ए-दोस्त भुलाया न जाएगा

सीने में दाग़ है कि मिटाया न जाएगा

अल्ताफ़ हुसैन हाली

*

मैं अपने दिल से निकालूँ ख़याल किस किस का

जो तू नहीं तो कोई और याद आए मुझे

क़तील शिफ़ाई

*

होते ही शाम जलने लगा याद का अलाव

आँसू सुनाने दुख की कहानी निकल पड़े

इक़बाल साजिद

*

दिल जो टूटा है तो फिर याद नहीं है कोई

इस ख़राबे में अब आबाद नहीं है कोई

सरफ़राज़ ख़ालिद

*

बिजली चमकी तो अब्र रोया

याद आ गई क्या हँसी किसी की

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

*

ठहरी ठहरी सी तबीअत में रवानी आई

आज फिर याद मोहब्बत की कहानी आई

इक़बाल अशहर

*

भूले-बिसरे हुए ग़म फिर उभर आते हैं कई

आईना देखें तो चेहरे नज़र आते हैं कई

फ़ुज़ैल जाफ़री

*

उन दिनों घर से अजब रिश्ता था

सारे दरवाज़े गले लगते थे

मोहम्मद अल्वी

*

ज़िंदगी हो तो कई काम निकल आते हैं

याद आऊँगा कभी मैं भी ज़रूरत में उसे

फ़ाज़िल जमीली

*

याद आओ मुझे लिल्लाह न तुम याद करो

मेरी और अपनी जवानी को न बर्बाद करो

अख़्तर शीरानी

*

बरसों हुए न तुम ने किया भूल कर भी याद

वादे की तरह हम भी फ़रामोश हो गए

जलील मानिकपूरी

*

रात इक शख़्स बहुत याद आया

जिस घड़ी चाँद नुमूदार हुआ

अज़ीज अहमद ख़ाँ शफ़क़

*

ये भूल भी क्या भूल है ये याद भी क्या याद

तू याद है और कोई नहीं तेरे सिवा याद

जलालुद्दीन अकबर

*

गुज़रे जो अपने यारों की सोहबत में चार दिन

ऐसा लगा बसर हुए जन्नत में चार दिन

ए जी जोश

*

याद अश्कों में बहा दी हम ने

आ कि हर बात भुला दी हम ने

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

*

तुम्हारी याद में दुनिया को हूँ भुलाए हुए

तुम्हारे दर्द को सीने से हूँ लगाए हुए

असर सहबाई

*

दम-ब-दम उठती हैं किस याद की लहरें दिल में

दर्द रह रह के ये करवट सी बदलता क्या है

जमाल पानीपती

*

कभी रोता था उस को याद कर के

अब अक्सर बे-सबब रोने लगा हूँ

अनवर शऊर

*

बहुत उदास हो तुम और मैं भी बैठा हूँ

गए दिनों की कमर से कमर लगाए हुए

अहमद मुश्ताक़

*

यही दो काम मोहब्बत ने दिए हैं हम को

दिल में है याद तिरी ज़िक्र है लब पर तेरा

जलील मानिकपूरी

*

ये बे-सबब नहीं आए हैं आँख में आँसू

ख़ुशी का लम्हा कोई याद आ गया होगा

अख़्तर सईद ख़ान

*

आफ़त-ए-जाँ हुई उस रू-ए-किताबी की याद

रास आया न मुझे हाफ़िज़-ए-क़ुरआँ होना

हैदर अली आतिश

*

मुद्दतें हो गईं बिछड़े हुए तुम से लेकिन

आज तक दिल से मिरे याद तुम्हारी न गई

अख़्तर शीरानी

*

याद आईं उस को देख के अपनी मुसीबतें

रोए हम आज ख़ूब लिपट कर रक़ीब से

हफ़ीज़ जौनपुरी

*

लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख जाए

यूँ याद तिरी शब भर सीने में सुलगती है

बशीर बद्र

*

देखिए अब न याद आइए आप

आज कल आप से ख़फ़ा हूँ मैं

उम्मतुर्रऊफ़ नसरीन

*

सब को हम भूल गए जोश-ए-जुनूँ में लेकिन

इक तिरी याद थी ऐसी जो भुलाई न गई

जिगर मुरादाबादी

*

गिन रहा हूँ हर्फ़ उन के अहद के

मुझ को धोका दे रही है याद क्या

अज़ीज़ हैदराबादी

*

कर कुछ ऐसा कि तुझे याद रखूँ

भूल जाने का तक़ाज़ा ही सही

जव्वाद शैख़

*

किसी के बिन किसी की याद के बिन

जिए जाने की हिम्मत है नहीं तो

जौन एलिया

*

हो गए दिन जिन्हें भुलाए हुए

आज कल हैं वो याद आए हुए

अनवर शऊर

*

कोई पुराना ख़त कुछ भूली-बिसरी याद

ज़ख़्मों पर वो लम्हे मरहम होते हैं

अंजुम इरफ़ानी

*

शाम हो या कि सहर याद उन्हीं की रखनी

दिन हो या रात हमें ज़िक्र उन्हीं का करना

हसरत मोहानी

*

मेरे दुश्मन न मुझ को भूल सके

वर्ना रखता है कौन किस को याद

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

*

अब तुझे कैसे बताएँ कि तिरी यादों में

कुछ इज़ाफ़ा ही किया हम ने ख़यानत नहीं की

हलीम कुरेशी

*

और कम याद आओगी अगले बरस तुम

अब के कम याद आई हो पिछले बरस से

स्वप्निल तिवारी

*

अकेला पा के मुझ को याद उन की आ तो जाती है

मगर फिर लौट कर जाती नहीं मैं कैसे सो जाऊँ

अनवर मिर्ज़ापुरी

*

याद में ख़्वाब में तसव्वुर में

आ कि आने के हैं हज़ार तरीक़

बयान मेरठी

*

लीजिए सुनिए अब अफ़्साना-ए-फ़ुर्क़त मुझ से

आप ने याद दिलाया तो मुझे याद आया

दाग़ देहलवी

*

नींद मिट्टी की महक सब्ज़े की ठंडक

मुझ को अपना घर बहुत याद आ रहा है

अब्दुल अहद साज़

*

फिर किसी की याद ने तड़पा दिया

फिर कलेजा थाम कर हम रह गए

फ़ानी बदायुनी

*

घर से बाहर नहीं निकला जाता

रौशनी याद दिलाती है तिरी

फ़ुज़ैल जाफ़री

*

कहीं ये तर्क-ए-मोहब्बत की इब्तिदा तो नहीं

वो मुझ को याद कभी इस क़दर नहीं आए

हफ़ीज़ होशियारपुरी

*

अब जी में है कि उन को भुला कर ही देख लें

वो बार बार याद जो आएँ तो क्या करें

अख़्तर शीरानी

*

कोई यादों से जोड़ ले हम को

हम भी इक टूटता सा रिश्ता हैं

बशर नवाज़

*

यादों की महफ़िल में खो कर

दिल अपना तन्हा तन्हा है

आज़ाद गुलाटी

*

सारी दुनिया के ख़यालात थे दिल में लेकिन

जब से है याद तिरी कुछ भी नहीं याद मुझे

जलील मानिकपूरी

*

ख़्वाब में नाम तिरा ले के पुकार उठता हूँ

बे-ख़ुदी में भी मुझे याद तिरी याद की है

लाला माधव राम जौहर

*

मिरा ख़याल नहीं है तो और क्या होगा

गुज़र गया तिरे माथे से जो शिकन की तरह

कमाल अहमद सिद्दीक़ी

*

याद भी तेरी मिट गई दिल से

और क्या रह गया है होने को

अबरार अहमद

*

शाम-ए-हिज्राँ भी इक क़यामत थी

आप आए तो मुझ को याद आया

महेश चंद्र नक़्श

*

याद और उन की याद की अल्लाह-रे मह्वियत

जैसे तमाम उम्र की फ़ुर्सत ख़रीद ली

माइल लखनवी

*

वो इक दिन जाने किस को याद कर के

मिरे सीने से लग के रो पड़ा था

अंजुम सलीमी

*

तुम्हें ये ग़म है कि अब चिट्ठियाँ नहीं आतीं

हमारी सोचो हमें हिचकियाँ नहीं आतीं

चराग़ शर्मा

*

तुझे कुछ उस की ख़बर भी है भूलने वाले

किसी को याद तेरी बार बार आई है

कौसर नियाज़ी

*

'साजिद' तू फिर से ख़ाना-ए-दिल में तलाश कर

मुमकिन है कोई याद पुरानी निकल पड़े

इक़बाल साजिद

*

नींद से उठ कर वो कहना याद है

तुम को क्या सूझी ये आधी रात को

अहमद हुसैन माइल

*

ख़ैर से दिल को तिरी याद से कुछ काम तो है

वस्ल की शब न सही हिज्र का हंगाम तो है

हसन नईम

*

यक-ब-यक नाम ले उठा मेरा

जी में क्या उस के आ गया होगा

ख़्वाजा मीर दर्द

*

याद-ए-माज़ी की पुर-असरार हसीं गलियों में

मेरे हमराह अभी घूम रहा है कोई

ख़ुर्शीद अहमद जामी

*

याद का ज़ख़्म भी हम तुझ को नहीं दे सकते

देख किस आलम-ए-ग़ुर्बत में मिले हैं तुझ से

सलीम कौसर

*

तमाम यादें महक रही हैं हर एक ग़ुंचा खिला हुआ है

ज़माना बीता मगर गुमाँ है कि आज ही वो जुदा हुआ है

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

*

कहानी अपनी अपनी अहल-ए-महफ़िल जब सुनाते हैं

मुझे भी याद इक भूला हुआ अफ़्साना आता है

अम्न लख़नवी

*

'अजमल'-सिराज हम उसे भूल हुए तो हैं

क्या जाने क्या करेंगे अगर याद आ गया

अजमल सिराज

*

किस तरफ़ आए किधर भूल पड़े ख़ैर तो है

आज क्या था जो तुम्हें याद हमारी आई

लाला माधव राम जौहर

*

मैं किनारे पे खड़ा हूँ तो कोई बात नहीं

बहता रहता है तिरी याद का दरिया मुझ में

बक़ा बलूच

*

यूँ रात गए किस को सदा देते हैं अक्सर

वो कौन हमारा था जो वापस नहीं आया

क़मर अब्बास क़मर

*

वो मिल न सके याद तो है उन की सलामत

इस याद से भी हम ने बहुत काम लिया है

कौसर नियाज़ी

*

आज कुछ रंग दिगर है मिरे घर का 'ख़ालिद'

सोचता हूँ ये तिरी याद है या ख़ुद तू है

ख़ालिद शरीफ़

*

अब भी आती है तिरी याद प इस कर्ब के साथ

टूटती नींद में जैसे कोई सपना देखा

अख़तर इमाम रिज़वी

*

जी न सकूँ मैं जिस के बग़ैर

अक्सर याद न आया वो

अतहर नफ़ीस

*

ये किस की याद की बारिश में भीगता है बदन

ये कैसा फूल सर-ए-शाख़-ए-जाँ खिला हुआ है

हुमैरा राहत

*

जिस तरफ़ जाएँ जहाँ जाएँ भरी दुनिया में

रास्ता रोके तिरी याद खड़ी होती है

अहमद राही

*

तुम्हारी याद निकलती नहीं मिरे दिल से

नशा छलकता नहीं है शराब से बाहर

फ़हीम शनास काज़मी

*

चमक रहे थे अंधेरे में सोच के जुगनू

मैं अपनी याद के ख़ेमे में सो नहीं पाया

ख़ालिद मलिक साहिल

*

मुझे वो याद करते हैं ये कह कर

ख़ुदा बख़्शे निहायत बा-वफ़ा था

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

*

मिरा अकेला ख़ुदा याद आ रहा है मुझे

ये सोचता हुआ गिरजा बुला रहा है मुझे

साक़ी फ़ारुक़ी

*

नए चराग़ जला याद के ख़राबे में

वतन में रात सही रौशनी मनाया कर

साक़ी फ़ारुक़ी

*

यूँ गुज़रता है तिरी याद की वादी में ख़याल

ख़ारज़ारों में कोई बरहना-पा हो जैसे

सय्यद एहतिशाम हुसैन

*

ऐ आरज़ू के धुँदले ख़राबो जवाब दो

फिर किस की याद आई थी मुझ को पुकारने

साहिर लुधियानवी

*

मंज़र था राख और तबीअत उदास थी

हर-चंद तेरी याद मिरे आस पास थी

वज़ीर आग़ा

*

किसी जानिब से कोई मह-जबीं आने ही वाला है

मुझे याद आ रही है आज मथुरा और काशी की

अब्दुल हमीद अदम

*

ख़ुद मुझ को भी ता-देर ख़बर हो नहीं पाई

आज आई तिरी याद इस आहिस्ता-रवी से

फ़िराक़ गोरखपुरी

*

याद तिरी जैसे कि सर-ए-शाम

धुँद उतर जाए पानी में

राजेन्द्र मनचंदा बानी

*

यादों के शबिस्तान में बैठा हुआ साइल

तन्हा जो नज़र आता है तन्हा नहीं होता

साईल इमरान

*

तुम जो कहते हो बिगड़ कर हम न आएँगे कभी

ये भी कह दो अब न आएगी हमारी याद भी

जलील मानिकपूरी

*

खिला रहेगा किसी याद के जज़ीरे पर

ये बाग़ मैं जिसे वीरान करने वाला हूँ

आफ़ताब हुसैन

*

रंग-ए-दिल रंग-ए-नज़र याद आया

तेरे जल्वों का असर याद आया

बाक़ी सिद्दीक़ी

*

अभी सहीफ़ा-ए-जाँ पर रक़म भी क्या होगा

अभी तो याद भी बे-साख़्ता नहीं आई

अदा जाफ़री

*

कभी भुलाया कभी याद कर लिया उस को

ये काम है तो बहुत मुझ से काम उस ने लिया

फ़ैसल अजमी

*

जाते हुए कमरे की किसी चीज़ को छू दे

मैं याद करूँगा कि तिरे हाथ लगे थे

दानिश नक़वी

*

ख़बर देती है याद करता है कोई

जो बाँधा है हिचकी ने तार आते आते

अफ़सर इलाहाबादी

*

रह रह के कौंदती हैं अंधेरे में बिजलियाँ

तुम याद कर रहे हो कि याद आ रहे हो तुम

हैरत गोंडवी

*

किसी की याद से दिल का अंधेरा और बढ़ता है

ये घर मेरे सुलगने से मुनव्वर हो नहीं सकता

ग़ुलाम हुसैन साजिद

*

यादों ने उसे तोड़ दिया मार के पत्थर

आईने की ख़ंदक़ में जो परछाईं पड़ी थी

आदिल मंसूरी

*

एक हँसती हुई बदली देखी

एक जलता हुआ घर याद आया

बाक़ी सिद्दीक़ी

*

बसी है सूखे गुलाबों की बात साँसों में

कोई ख़याल किसी याद के हिसार में है

ख़ालिदा उज़्मा

*

याद न आने का व'अदा कर के

वो तो पहले से सिवा याद आया

करामत बुख़ारी

*

ये सच है कि औरों ही को तुम याद करोगे

मेरे दिल-ए-नाशाद को कब शाद करोगे

जोशिश अज़ीमाबादी

*

न हालत मेरी कुछ कहना न मतलब नामा-बर कहना

जो मुमकिन हो तो ये कहना तुम्हारी याद आती है

जलील मानिकपूरी

*

तुम्हारी याद मेरा दिल ये दोनों चलते पुर्ज़े हैं

जो इन में से कोई मिटता मुझे पहले मिटा जाता

बेख़ुद देहलवी

*

फिर गई इक और ही दुनिया नज़र के सामने

बैठे बैठे क्या बताऊँ क्या मुझे याद आ गया

हमीद जालंधरी

*

तेरे ख़याल में कभी इस तरह खो गए

तेरा ख़याल भी हमें अक्सर नहीं रहा

जमाल एहसानी

*

हर एक सम्त तिरी याद का धुँदलका है

तिरे ख़याल का सूरज उतर गया मुझ में

आकाश 'अर्श'

*

सब के होते हुए इक रोज़ वो तन्हा होगा

फिर वो ढूँडेगा हमें और नहीं पाएगा वो

अजमल सिराज

*

याद रखने की ये बातें हैं बजा है सच है

आप भूले न हमें आप को हम भूल गए

हातिम अली मेहर

*

तआक़ुब में है मेरे याद किस की

मैं किस को भूल जाना चाहता हूँ

कौसर मज़हरी

*

नए सिरे से जल उट्ठी है फिर पुरानी आग

अजीब लुत्फ़ तुझे भूलने में आया है

जमाल एहसानी

*

तमाम रात वो पहलू को गर्म करता रहा

किसी की याद का नश्शा शराब जैसा था

अबरार आज़मी

*

हम फ़रामोश की फ़रामोशी

और तुम याद उम्र भर भूले

मिर्ज़ा अज़फ़री

*

गो फ़रामोशी की तकमील हुआ चाहती है

फिर भी कह दो कि हमें याद वो आया न करे

अबरार अहमद

*

एक तुम्हारी याद ने लाख दिए जलाए हैं

आमद-ए-शब के क़ब्ल भी ख़त्म-ए-सहर के बाद भी

अली जवाद ज़ैदी

*

ज़ेहन की क़ैद से आज़ाद किया जाए उसे

जिस को पाना नहीं क्या याद किया जाए उसे

सालिम सलीम

*

दिन के शोर में शामिल शायद कोई तुम्हारी बात भी हो

आवाज़ों के उलझे धागे सुलझाएँगे शाम को

रईस फ़रोग़

*

लोग नाज़ुक थे और एहसास के वीराने तक

वो गुज़रते हुए आँखों की जलन से आए

रईस फ़रोग़

*

उन को भूले ज़माना होता है

अश्क आँखों में फिर भी भर आए

वेद राही

*

तिरी याद में थी वो बे-ख़ुदी कि न फ़िक्र-ए-नामा-बरी रही

मिरी वो निगारिश-ए-शौक़ भी कहीं ताक़ ही पे धरी रही

मोहम्मद ज़ुबैर रूही इलाहाबादी

*

ऐ मुज़फ़्फ़र किस लिए भोपाल याद आने लगा

क्या समझते थे कि दिल्ली में न होगा आसमाँ

मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

*

फिर किसी की बज़्म का आया ख़याल

फिर धुआँ उट्ठा दिल-ए-नाकाम से

महेश चंद्र नक़्श

*

मरकज़-ए-जाँ तो वही तू है मगर तेरे सिवा

लोग हैं और भी इस याद पुरानी में कहीं

अबरार अहमद

*

मुझे तो याद है अब तक वो क्या ज़माना था

तिरे जवाब का मौसम मिरे सवाल के दिन

रफ़ीआ शबनम आबिदी

*

तुम्हारी याद के साए भी कुछ सिमट से गए

ग़मों की धूप तो बाहर थी अक्स अंदर था

मुबारक शमीम

*

तू भी रह रह के मुझ को याद करे

मेरा भी दिल तिरी पनाह में है

नुसरत ज़ेहरा

*

तिरा ख़याल दे गया है आसरा कहीं कहीं

तिरा फ़िराक़ हौसले बढ़ा गया कभी कभी






















































































Wednesday, June 18, 2025

परवीन शाकिर '25

मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी

वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा

*

वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा

मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा

*

हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ

दो घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं

*

कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने

बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की

*

हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा

क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा

*

चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया

इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया

*

अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं

अब किस उम्मीद पे दरवाज़े से झाँके कोई

*

यूँ बिछड़ना भी बहुत आसाँ न था उस से मगर

जाते जाते उस का वो मुड़ कर दोबारा देखना

*

बस ये हुआ कि उस ने तकल्लुफ़ से बात की

और हम ने रोते रोते दुपट्टे भिगो लिए

*

उस ने जलती हुई पेशानी पे जब हाथ रखा

रूह तक आ गई तासीर मसीहाई की

*

लड़कियों के दुख अजब होते हैं सुख उस से अजीब

हँस रही हैं और काजल भीगता है साथ साथ

*

कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी

मैं अपने हाथ से उस की दुल्हन सजाऊँगी

*

जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें

बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए

*

तू बदलता है तो बे-साख़्ता मेरी आँखें

अपने हाथों की लकीरों से उलझ जाती हैं

*

अपने क़ातिल की ज़ेहानत से परेशान हूँ मैं

रोज़ इक मौत नए तर्ज़ की ईजाद करे

*

अपनी रुस्वाई तिरे नाम का चर्चा देखूँ

इक ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या क्या देखूँ

*

काँटों में घिरे फूल को चूम आएगी लेकिन

तितली के परों को कभी छिलते नहीं देखा

*

पास जब तक वो रहे दर्द थमा रहता है

फैलता जाता है फिर आँख के काजल की तरह

*

कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की

उस ने ख़ुश्बू की तरह मेरी पज़ीराई की

*

क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला

ज़ख़्म ही ये मुझे लगता नहीं भरने वाला


-परवीन शाकिर


आदमी मजबूर हो जाता है दिल आने के बाद

आप भी इतना समझ लो मुझको समझने के बाद,

आदमी मजबूर हो जाता है दिल आने के बाद.

आपके आने से पहले सब कुछ था याद मुझे,

याद फिर आएगा मुझे आपके जाने के बाद 

Tuesday, June 17, 2025

बिस्मिल अज़ीमाबादी

 वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमाँ

हम अभी से क्यूँ बताएँ क्या हमारे दिल में है


सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है


न अपने ज़ब्त को रुस्वा करो सता के मुझे

ख़ुदा के वास्ते देखो न मुस्कुरा के मुझे


तुम सुन के क्या करोगे कहानी ग़रीब की

जो सब की सुन रहा है कहेंगे उसी से हम


हो न मायूस ख़ुदा से 'बिस्मिल'

ये बुरे दिन भी गुज़र जाएँगे


-बिस्मिल अज़ीमाबादी

___________________________________________________________

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है

तुम सुन के क्या करोगे कहानी ग़रीब की
जो सब की सुन रहा है कहेंगे उसी से हम

हो न मायूस ख़ुदा से 'बिस्मिल'
ये बुरे दिन भी गुज़र जाएँगे

मजबूरियों को अपनी कहें क्या किसी से हम
लाए गए हैं, आए नहीं हैं ख़ुशी से हम

अल्लाह तेरे हाथ है अब आबरू-ए-शौक़
दम घुट रहा है वक़्त की रफ़्तार देख कर

एक दिन वो दिन थे रोने पे हँसा करते थे हम
एक ये दिन हैं कि अब हँसने पे रोना आए है

जुरअत-ए-शौक़ तो क्या कुछ नहीं कहती लेकिन
पाँव फैलाने नहीं देती है चादर मुझ को

'बिस्मिल' बुतों का इश्क़ मुबारक तुम्हें मगर
इतने निडर न हो कि ख़ुदा का भी डर न हो

कहाँ क़रार है कहने को दिल क़रार में है
जो थी ख़िज़ाँ में वही कैफ़ियत बहार में है

क्या करें जाम-ओ-सुबू हाथ पकड़ लेते हैं
जी तो कहता है कि उठ जाइए मय-ख़ाने से

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

___________________________________________________________

वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमाँ
हम अभी से क्यूँ बताएँ क्या हमारे दिल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है

न अपने ज़ब्त को रुस्वा करो सता के मुझे
ख़ुदा के वास्ते देखो न मुस्कुरा के मुझे

तुम सुन के क्या करोगे कहानी ग़रीब की
जो सब की सुन रहा है कहेंगे उसी से हम

हो न मायूस ख़ुदा से 'बिस्मिल'
ये बुरे दिन भी गुज़र जाएँगे


रहरव-ए-राह-ए-मोहब्बत रह न जाना राह में
लज़्ज़त-ए-सहरा-नवर्दी दूरी-ए-मंज़िल में है

मजबूरियों को अपनी कहें क्या किसी से हम
लाए गए हैं, आए नहीं हैं ख़ुशी से हम

अल्लाह तेरे हाथ है अब आबरू-ए-शौक़
दम घुट रहा है वक़्त की रफ़्तार देख कर


देखा न तुम ने आँख उठा कर भी एक बार
गुज़रे हज़ार बार तुम्हारी गली से हम

एक दिन वो दिन थे रोने पे हँसा करते थे हम
एक ये दिन हैं कि अब हँसने पे रोना आए है

जुरअत-ए-शौक़ तो क्या कुछ नहीं कहती लेकिन
पाँव फैलाने नहीं देती है चादर मुझ को


ये ज़िंदगी भी कोई ज़िंदगी हुई 'बिस्मिल'
न रो सके न कभी हँस सके ठिकाने से

सौदा वो क्या करेगा ख़रीदार देख कर
घबरा गया जो गर्मी-ए-बाज़ार देख कर

'बिस्मिल' बुतों का इश्क़ मुबारक तुम्हें मगर
इतने निडर न हो कि ख़ुदा का भी डर न हो

चमन को लग गई किस की नज़र ख़ुदा जाने
चमन रहा न रहे वो चमन के अफ़्साने

कहाँ क़रार है कहने को दिल क़रार में है
जो थी ख़िज़ाँ में वही कैफ़ियत बहार में है

दास्ताँ पूरी न होने पाई
ज़िंदगी ख़त्म हुई जाती है

आज़ादी ने बाज़ू भी सलामत नहीं रक्खे
ऐ ताक़त-ए-परवाज़ तुझे लाएँ कहाँ से

किस हाल में हो कैसे हो क्या करते हो 'बिस्मिल'
मरते हो कि जीते हो ज़माने के असर से

ग़ैरों ने ग़ैर जान के हम को उठा दिया
बैठे जहाँ भी साया-ए-दीवार देख कर

कहाँ तमाम हुई दास्तान 'बिस्मिल' की
बहुत सी बात तो कहने को रह गई ऐ दोस्त

इक ग़लत सज्दे से क्या होता है वाइज़ कुछ न पूछ
उम्र भर की सब रियाज़त ख़ाक में मिल जाए है

ये कह के देती जाती है तस्कीं शब-ए-फ़िराक़
वो कौन सी है रात कि जिस की सहर न हो

ख़िज़ाँ जब तक चली जाती नहीं है
चमन वालों को नींद आती नहीं है

बयाबान-ए-जुनूँ में शाम-ए-ग़ुर्बत जब सताया की
मुझे रह रह कर ऐ सुब्ह-ए-वतन तू याद आया की

क्या करें जाम-ओ-सुबू हाथ पकड़ लेते हैं
जी तो कहता है कि उठ जाइए मय-ख़ाने से

हँसी 'बिस्मिल' की हालत पर किसी को
कभी आती थी अब आती नहीं है

उगल न संग-ए-मलामत ख़ुदा से डर नासेह
मिलेगा क्या तुझे शीशों के टूट जाने से

-बिस्मिल अज़ीमाबादी



सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।

देखना है ज़ोर कितना, बाज़ु-ए-कातिल में है?

करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ऐ शहीदे-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है
खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,
आशिक़ोँ का आज जमघट कूच-ए-क़ातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।


है लिये हथियार दुश्मन, ताक में बैठा उधर
और हम तैय्यार हैं; सीना लिये अपना इधर।
खून से खेलेंगे होली, गर वतन मुश्किल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।

हाथ, जिन में हो जुनूँ, कटते नहीं तलवार से;
सर जो उठ जाते हैं वो, झुकते नहीं ललकार से।
और भड़केगा जो शोला, सा हमारे दिल में है;
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।


हम तो निकले ही थे घर से, बाँधकर सर पे कफ़न
जाँ हथेली पर लिये लो, बढ चले हैं ये कदम।
जिन्दगी तो अपनी महमाँ, मौत की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।


यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल, कह रहा है बार-बार;
क्या तमन्ना-ए-शहादत, भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब;
होश दुश्मन के उड़ा, देंगे हमें रोको न आज।
दूर रह पाये जो हमसे, दम कहाँ मंज़िल में है

वह जिस्म भी क्या जिस्म है, जिसमें न हो ख़ून-ए-जुनूँ;
तूफ़ानों से क्या लड़े जो, कश्ती-ए-साहिल में है।

सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है;
देखना है ज़ोर कितना, बाज़ु-ए-कातिल में है।


-बिस्मिल अज़ीमाबादी


_________________________________________________________


सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है

ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तिरे ऊपर निसार
ले तिरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है

वाए क़िस्मत पाँव की ऐ ज़ोफ़ कुछ चलती नहीं
कारवाँ अपना अभी तक पहली ही मंज़िल में है

रहरव-ए-राह-ए-मोहब्बत रह न जाना राह में
लज़्ज़त-ए-सहरा-नवर्दी दूरी-ए-मंज़िल में है

शौक़ से राह-ए-मोहब्बत की मुसीबत झेल ले
इक ख़ुशी का राज़ पिन्हाँ जादा-ए-मंज़िल में है

आज फिर मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार बार
आएँ वो शौक़-ए-शहादत जिन के जिन के दिल में है

मरने वालो आओ अब गर्दन कटाओ शौक़ से
ये ग़नीमत वक़्त है ख़ंजर कफ़-ए-क़ातिल में है

माने-ए-इज़हार तुम को है हया, हम को अदब
कुछ तुम्हारे दिल के अंदर कुछ हमारे दिल में है

मय-कदा सुनसान ख़ुम उल्टे पड़े हैं जाम चूर
सर-निगूँ बैठा है साक़ी जो तिरी महफ़िल में है

वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमाँ
हम अभी से क्यूँ बताएँ क्या हमारे दिल में है

अब न अगले वलवले हैं और न वो अरमाँ की भीड़
सिर्फ़ मिट जाने की इक हसरत दिल-ए-'बिस्मिल' में है

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता

सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता

निकलता आ रहा है आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता


जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा

हया यक-लख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता


शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तो अब तो सोने दो

कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता आहिस्ता


सवाल-ए-वस्ल पर उन को अदू का ख़ौफ़ है इतना

दबे होंटों से देते हैं जवाब आहिस्ता आहिस्ता


वो बेदर्दी से सर काटें 'अमीर' और मैं कहूँ उन से

हुज़ूर आहिस्ता आहिस्ता जनाब आहिस्ता आहिस्ता


फ़िल्म: दीदार-ए -यार (1982)

-अमीर मीनाई


उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ

ढूँडने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ


डाल के ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा

कुछ ये मेहंदी नहीं मेरी कि छुपा भी न सकूँ


ज़ब्त कम-बख़्त ने याँ आ के गला घोंटा है

कि उसे हाल सुनाऊँ तो सुना भी न सकूँ


नक़्श-ए-पा देख तो लूँ लाख करूँगा सज्दे

सर मिरा अर्श नहीं है जो झुका भी न सकूँ


बेवफ़ा लिखते हैं वो अपने क़लम से मुझ को

ये वो क़िस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ


इस तरह सोए हैं सर रख के मिरे ज़ानू पर

अपनी सोई हुई क़िस्मत को जगा भी न सकूँ

-अमीर मीनाई


मोहब्बत कर के देखो ना मोहब्बत क्यूँ नहीं करते

तुम्हें उस से मोहब्बत है तो हिम्मत क्यूँ नहीं करते

किसी दिन उस के दर पे रक़्स-ए-वहशत क्यूँ नहीं करते


इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस किस से

मोहब्बत कर के देखो ना मोहब्बत क्यूँ नहीं करते


तुम्हारे दिल पे अपना नाम लिक्खा हम ने देखा है

हमारी चीज़ फिर हम को इनायत क्यूँ नहीं करते


मिरी दिल की तबाही की शिकायत पर कहा उस ने

तुम अपने घर की चीज़ों की हिफ़ाज़त क्यूँ नहीं करते


बदन बैठा है कब से कासा-ए-उम्मीद की सूरत

सो दे कर वस्ल की ख़ैरात रुख़्सत क्यूँ नहीं करते


क़यामत देखने के शौक़ में हम मर मिटे तुम पर

क़यामत करने वालो अब क़यामत क्यूँ नहीं करते


मैं अपने साथ जज़्बों की जमाअत ले के आया हूँ

जब इतने मुक़तदी हैं तो इमामत क्यूँ नहीं करते


तुम अपने होंठ आईने में देखो और फिर सोचो

कि हम सिर्फ़ एक बोसे पर क़नाअ'त क्यूँ नहीं करते


बहुत नाराज़ है वो और उसे हम से शिकायत है

कि इस नाराज़गी की भी शिकायत क्यूँ नहीं करते


कभी अल्लाह-मियाँ पूछेंगे तब उन को बताएँगे

किसी को क्यूँ बताएँ हम इबादत क्यूँ नहीं करते


मुरत्तब कर लिया है कुल्लियात-ए-ज़ख़्म अगर अपना

तो फिर 'एहसास-जी' इस की इशाअ'त क्यूँ नहीं करते

-फ़रहत एहसास


ख़ामोशी (शेर, शायरी)

मुस्तक़िल बोलता ही रहता हूँ

कितना ख़ामोश हूँ मैं अंदर से

जौन एलिया


हम लबों से कह न पाए उन से हाल-ए-दिल कभी

और वो समझे नहीं ये ख़ामुशी क्या चीज़ है

निदा फ़ाज़ली



बोलते क्यूँ नहीं मिरे हक़ में

आबले पड़ गए ज़बान में क्या

जौन एलिया


इल्म की इब्तिदा है हंगामा

इल्म की इंतिहा है ख़ामोशी

फ़िरदौस गयावी



आप ने तस्वीर भेजी मैं ने देखी ग़ौर से

हर अदा अच्छी ख़मोशी की अदा अच्छी नहीं

जलील मानिकपूरी



ख़मोशी से मुसीबत और भी संगीन होती है

तड़प ऐ दिल तड़पने से ज़रा तस्कीन होती है

शाद अज़ीमाबादी


ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी

कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम

जौन एलिया


चुप-चाप अपनी आग में जलते रहो 'फ़राज़'

दुनिया तो अर्ज़-ए-हाल से बे-आबरू करे

अहमद फ़राज़


उसे बेचैन कर जाऊँगा मैं भी

ख़मोशी से गुज़र जाऊँगा मैं भी

अमीर क़ज़लबाश


मेरी ख़ामोशियों में लर्ज़ां है

मेरे नालों की गुम-शुदा आवाज़

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़


मोहब्बत सोज़ भी है साज़ भी है

ख़मोशी भी है ये आवाज़ भी है

अर्श मलसियानी



चुप चुप क्यूँ रहते हो 'नासिर'

ये क्या रोग लगा रक्खा है

नासिर काज़मी


दूर ख़ामोश बैठा रहता हूँ

इस तरह हाल दिल का कहता हूँ

आबरू शाह मुबारक


चुप रहो तो पूछता है ख़ैर है

लो ख़मोशी भी शिकायत हो गई

अख़्तर अंसारी अकबराबादी



तुम्हारे ख़त में नज़र आई इतनी ख़ामोशी

कि मुझ को रखने पड़े अपने कान काग़ज़ पर

यासिर ख़ान इनाम



हर तरफ़ थी ख़ामोशी और ऐसी ख़ामोशी

रात अपने साए से हम भी डर के रोए थे

भारत भूषण पन्त



ज़ोर क़िस्मत पे चल नहीं सकता

ख़ामुशी इख़्तियार करता हूँ

अज़ीज़ हैदराबादी



जो चुप रहा तो वो समझेगा बद-गुमान मुझे

बुरा भला ही सही कुछ तो बोल आऊँ मैं

इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी


ख़मोशी मेरी मअनी-ख़ेज़ थी ऐ आरज़ू कितनी

कि जिस ने जैसा चाहा वैसा अफ़्साना बना डाला

आरज़ू लखनवी


मिरी ख़ामोशियों पर दुनिया मुझ को तअन देती है

ये क्या जाने कि चुप रह कर भी की जाती हैं तक़रीरें

सीमाब अकबराबादी


'बाक़ी' जो चुप रहोगे तो उट्ठेंगी उँगलियाँ

है बोलना भी रस्म-ए-जहाँ बोलते रहो

बाक़ी सिद्दीक़ी


हर एक बात ज़बाँ से कही नहीं जाती

जो चुपके बैठे हैं कुछ उन की बात भी समझो

महशर इनायती


असर भी ले रहा हूँ तेरी चुप का

तुझे क़ाइल भी करता जा रहा हूँ

फ़िराक़ गोरखपुरी


रंग दरकार थे हम को तिरी ख़ामोशी के

एक आवाज़ की तस्वीर बनानी थी हमें

नाज़िर वहीद



निकाले गए इस के मअ'नी हज़ार

अजब चीज़ थी इक मिरी ख़ामुशी

ख़लील-उर-रहमान आज़मी


ख़ामोशी में चाहे जितना बेगाना-पन हो

लेकिन इक आहट जानी-पहचानी होती है

भारत भूषण पन्त



ख़ामुशी तेरी मिरी जान लिए लेती है

अपनी तस्वीर से बाहर तुझे आना होगा

मोहम्मद अली साहिल



छेड़ कर जैसे गुज़र जाती है दोशीज़ा हवा

देर से ख़ामोश है गहरा समुंदर और मैं

ज़ेब ग़ौरी



हम ने अव्वल तो कभी उस को पुकारा ही नहीं

और पुकारा तो पुकारा भी सदाओं के बग़ैर

अहमद अता


ख़मोश रहने की आदत भी मार देती है

तुम्हें ये ज़हर तो अंदर से चाट जाएगा

आबिद ख़ुर्शीद


चटख़ के टूट गई है तो बन गई आवाज़

जो मेरे सीने में इक रोज़ ख़ामुशी हुई थी

सालिम सलीम


सबब ख़ामोशियों का मैं नहीं था

मिरे घर में सभी कम बोलते थे

भारत भूषण पन्त


जिसे सय्याद ने कुछ गुल ने कुछ बुलबुल ने कुछ समझा

चमन में कितनी मानी-ख़ेज़ थी इक ख़ामुशी मिरी

जिगर मुरादाबादी


मैं चुप रहा कि वज़ाहत से बात बढ़ जाती

हज़ार शेवा-ए-हुस्न-ए-बयाँ के होते हुए

इफ़्तिख़ार आरिफ़


मैं तेरे कहे से चुप हूँ लेकिन

चुप भी तो बयान-ए-मुद्दआ है

अहमद नदीम क़ासमी


मैं हूँ रात का एक बजा है

ख़ाली रस्ता बोल रहा है

नासिर काज़मी


कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहो

ऐ लोगो ख़ामोश रहो हाँ ऐ लोगो ख़ामोश रहो

इब्न-ए-इंशा


हम न मानेंगे ख़मोशी है तमन्ना का मिज़ाज

हाँ भरी बज़्म में वो बोल न पाई होगी

कालीदास गुप्ता रज़ा



जो सुनता हूँ सुनता हूँ मैं अपनी ख़मोशी से

जो कहती है कहती है मुझ से मिरी ख़ामोशी

बेदम शाह वारसी


बहुत गहरी है उस की ख़ामुशी भी

मैं अपने क़द को छोटा पा रही हूँ

फ़ातिमा हसन


खुली ज़बान तो ज़र्फ़ उन का हो गया ज़ाहिर

हज़ार भेद छुपा रक्खे थे ख़मोशी में

अनवर सदीद


ख़मोशी में हर बात बन जाए है

जो बोले है दीवाना कहलाए है

कलीम आजिज़


बोल पड़ता तो मिरी बात मिरी ही रहती

ख़ामुशी ने हैं दिए सब को फ़साने क्या क्या

अजमल सिद्दीक़ी


ख़ामुशी छेड़ रही है कोई नौहा अपना

टूटता जाता है आवाज़ से रिश्ता अपना

साक़ी फ़ारुक़ी


मुझे तो होश न था उन की बज़्म में लेकिन

ख़मोशियों ने मेरी उन से कुछ कलाम किया

बहज़ाद लखनवी


ख़ामोशी के नाख़ुन से छिल जाया करते हैं

कोई फिर इन ज़ख़्मों पर आवाज़ें मलता है

अमीर इमाम



ये हासिल है मिरी ख़ामोशियों का

कि पत्थर आज़माने लग गए हैं

मदन मोहन दानिश


वो बोलता था मगर लब नहीं हिलाता था

इशारा करता था जुम्बिश न थी इशारे में

इक़बाल साजिद


एक दिन मेरी ख़ामुशी ने मुझे

लफ़्ज़ की ओट से इशारा किया

अंजुम सलीमी


अजीब शोर मचाने लगे हैं सन्नाटे

ये किस तरह की ख़मोशी हर इक सदा में है

आसिम वास्ती


सुनती रही मैं सब के दुख ख़ामोशी से

किस का दुख था मेरे जैसा भूल गई

फ़ातिमा हसन



शोर जितना है काएनात में शोर

मेरे अंदर की ख़ामुशी से हुआ

काशिफ़ हुसैन ग़ाएर



इक अश्क क़हक़हों से गुज़रता चला गया

इक चीख़ ख़ामुशी में उतरती चली गई

अमीर इमाम



सौत क्या शय है ख़ामुशी क्या है

ग़म किसे कहते हैं ख़ुशी क्या है

फ़रहत शहज़ाद



घड़ी जो बीत गई उस का भी शुमार किया

निसाब-ए-जाँ में तिरी ख़ामुशी भी शामिल की

जावेद नासिर



मेरी अर्ज़-ए-शौक़ बे-मअ'नी है उन के वास्ते

उन की ख़ामोशी भी इक पैग़ाम है मेरे लिए

मुईन अहसन जज़्बी



क्या बताऊँ मैं कि तुम ने किस को सौंपी है हया

इस लिए सोचा मिरी ख़ामोशियाँ ही ठीक हैं

ए.आर.साहिल "अलीग"



शोर सा एक हर इक सम्त बपा लगता है

वो ख़मोशी है कि लम्हा भी सदा लगता है

अदीम हाशमी



जब ख़ामुशी ही बज़्म का दस्तूर हो गई

मैं आदमी से नक़्श-ब-दीवार बन गया

ज़हीर काश्मीरी



रात मेरी आँखों में कुछ अजीब चेहरे थे

और कुछ सदाएँ थीं ख़ामुशी के पैकर में

ख़ुशबीर सिंह शाद



तमाम शहर पे इक ख़ामुशी मुसल्लत है

अब ऐसा कर कि किसी दिन मिरी ज़बाँ से निकल

अभिषेक शुक्ला



ख़मोशी दिल को है फ़ुर्क़त में दिन रात

घड़ी रहती है ये आठों पहर बंद

लाला माधव राम जौहर



'वहशत' उस बुत ने तग़ाफ़ुल जब किया अपना शिआर

काम ख़ामोशी से मैं ने भी लिया फ़रियाद का

वहशत रज़ा अली कलकत्वी



टूटते बर्तन का शोर और गूँगी बहरी ख़ामुशी

हम ने रख ली है बचा कर एक गहरी ख़ामुशी

सालिम सलीम

रियाज़ ख़ैराबादी (मय, पैमाना, जाम, शराब)

*

ग़म मुझे देते हो औरों की ख़ुशी के वास्ते

क्यूँ बुरे बनते हो तुम नाहक़ किसी के वास्ते

*
मेहंदी लगाए बैठे हैं कुछ इस अदा से वो
मुट्ठी में उन की दे दे कोई दिल निकाल के

*
बच जाए जवानी में जो दुनिया की हवा से
होता है फ़रिश्ता कोई इंसाँ नहीं होता

*
दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं
रोने वालों से हँसी अच्छी नहीं
*

सुना है 'रियाज़' अपनी दाढ़ी बढ़ा कर
बुढ़ापे में अल्लाह वाले हुए हैं

*
देखिएगा सँभल कर आईना
सामना आज है मुक़ाबिल का
*

मय-ख़ाने में क्यूँ याद-ए-ख़ुदा होती है अक्सर
मस्जिद में तो ज़िक्र-ए-मय-ओ-मीना नहीं होता

*

अच्छी पी ली ख़राब पी ली
जैसी पाई शराब पी ली

*


जाम है तौबा-शिकन तौबा मिरी जाम-शिकन
सामने ढेर हैं टूटे हुए पैमानों के

*

घर में दस हों तो ये रौनक़ नहीं होगी घर में
एक दीवाने से आबाद है सहरा कैसा

*
अल्लाह-रे नाज़ुकी कि जवाब-ए-सलाम में
हाथ उस का उठ के रह गया मेहंदी के बोझ से

*
मय-ख़ाने में मज़ार हमारा अगर बना
दुनिया यही कहेगी कि जन्नत में घर बना

*
मुफ़लिसों की ज़िंदगी का ज़िक्र क्या
मुफ़्लिसी की मौत भी अच्छी नहीं

*
ऐसी ही इंतिज़ार में लज़्ज़त अगर न हो
तो दो घड़ी फ़िराक़ में अपनी बसर न हो

*
भर भर के जाम बज़्म में छलकाए जाते हैं
हम उन में हैं जो दूर से तरसाए जाते हैं

*

इतनी पी है कि ब'अद-ए-तौबा भी
बे-पिए बे-ख़ुदी सी रहती है

*

हम बंद किए आँख तसव्वुर में पड़े हैं
ऐसे में कोई छम से जो आ जाए तो क्या हो

*

दर्द हो तो दवा करे कोई
मौत ही हो तो क्या करे कोई

*
रोते जो आए थे रुला के गए
इब्तिदा इंतिहा को रोते हैं

*

आप आए तो ख़याल-ए-दिल-ए-नाशाद आया
आप ने याद दिलाया तो मुझे याद आया

*
बात दिल की ज़बान पर आई
आफ़त अब मेरी जान पर आई

*
ग़ुरूर भी जो करूँ मैं तो आजिज़ी हो जाए
ख़ुदी में लुत्फ़ वो आए कि बे-ख़ुदी हो जाए

*
धोके से पिला दी थी उसे भी कोई दो घूँट
पहले से बहुत नर्म है वाइज़ की ज़बाँ अब

*

हमारी आँखों में आओ तो हम दिखाएँ तुम्हें
अदा तुम्हारी जो तुम भी कहो कि हाँ कुछ है


*

मेरे आग़ोश में यूँही कभी आ जा तू भी
जिस अदा से तिरी आँखों में हया आई है

*

डर है न दुपट्टा कहीं सीने से सरक जाए
पंखा भी हमें पास से झलने नहीं देते

*

आबाद करें बादा-कश अल्लाह का घर आज
दिन जुमअ' का है बंद है मय-ख़ाने का दर आज

*

मर गए फिर भी तअल्लुक़ है ये मय-ख़ाने से
मेरे हिस्से की छलक जाती है पैमाने से

*

वो पूछते हैं शौक़ तुझे है विसाल का
मुँह चूम लूँ जवाब ये है इस सवाल का

*
क्या शक्ल है वस्ल में किसी की
तस्वीर हैं अपनी बेबसी की

*
ख़्वाब में भी तो नज़र भर के न देखा उन को
ये भी आदाब-ए-मोहब्बत को गवारा न हुआ

*


शैख़-जी गिर गए थे हौज़ में मयख़ाने के
डूब कर चश्मा-ए-कौसर के किनारे निकले

*
पाऊँ तो इन हसीनों का मुँह चूम लूँ 'रियाज़'
आज इन की गालियों ने बड़ा ही मज़ा दिया

*
आगे कुछ बढ़ कर मिलेगी मस्जिद-ए-जामे 'रियाज़'
इक ज़रा मुड़ जाइएगा मय-कदे के दर से आप

*

क्या मज़ा देती है बिजली की चमक मुझ को 'रियाज़'
मुझ से लिपटे हैं मिरे नाम से डरने वाले

*

कुछ भी हो 'रियाज़' आँख में आँसू नहीं आते
मुझ को तो किसी बात का अब ग़म नहीं होता

*

डराता है हमें महशर से तू वाइज़ अरे जा भी
ये हंगामे तो हम ने रोज़ कू-ए-यार में देखे

*
किसी का हंस के कहना मौत क्यूँ आने लगी तुम को
ये जितने चाहने वाले हैं सब बे-मौत मरते हैं

*

नज्द में क्या क़ैस का है उर्स आज
नंगे नंगे जम्अ' हैं हम्माम में

*

वस्ल की रात के सिवा कोई शाम
साथ ले कर सहर नहीं आती

*
आफ़त हमारी जान को है बे-क़रार दिल
ये हाल है कि सीने में जैसे हज़ार दिल

*
कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर
शिकन रह जाएगी यूँही जबीं पर


*
छुपता नहीं छुपाने से आलम उभार का
आँचल की तह से देख नुमूदार क्या हुआ

*
ख़ुदा के हाथ है बिकना न बिकना मय का ऐ साक़ी
बराबर मस्जिद-ए-जामे के हम ने अब दुकाँ रख दी


*
न आया हमें इश्क़ करना न आया
मरे उम्र-भर और मरना न आया
*

क्या शराब-ए-नाब ने पस्ती से पाया है उरूज
सर चढ़ी है हल्क़ से नीचे उतर जाने के ब'अद
*

क़द्र मुझ रिंद की तुझ को नहीं ऐ पीर-ए-मुग़ाँ
तौबा कर लूँ तो कभी मय-कदा आबाद न हो

*
शेर-ए-तर मेरे छलकते हुए साग़र हैं 'रियाज़'
फिर भी सब पूछते हैं आप ने मय पी कि नहीं
*
हम जानते हैं लुत्फ़-ए-तक़ाज़ा-ए-मय-फ़रोश
वो नक़्द में कहाँ जो मज़ा है उधार में
*

बड़े पाक तीनत बड़े साफ़ बातिन
'रियाज़' आप को कुछ हमीं जानते हैं

*
कहती है ऐ 'रियाज़' दराज़ी ये रीश की
टट्टी की आड़ में है मज़ा कुछ शिकार का
*
हम जाम-ए-मय के भी लब-ए-तर चूसते नहीं
चसका पड़ा हुआ है तुम्हारी ज़बान का

*
जाने वाले न हम उस कूचे में आने वाले
अच्छे आए हमें दीवाना बनाने वाले
*
जिस दिन से हराम हो गई है
मय ख़ुल्द-मक़ाम हो गई है


*
सय्याद तेरा घर मुझे जन्नत सही मगर
जन्नत से भी सिवा मुझे राहत चमन में थी

*


बे-अब्र रिंद पीते नहीं वाइ'ज़ो शराब
करते हैं ये गुनाह भी रहमत के ज़ोर पर

*
मर गया हूँ पे तअ'ल्लुक़ है ये मय-ख़ाने से
मेरे हिस्से की छलक जाती है पैमाने से

*
वो जोबन बहुत सर उठाए हुए हैं
बहुत तंग बंद-ए-क़बा है किसी का

*


उठवाओ मेज़ से मय-ओ-साग़र 'रियाज़' जल्द
आते हैं इक बुज़ुर्ग पुराने ख़याल के

*

इस वास्ते कि आव-भगत मय-कदे में हो
पूछा जो घर किसी ने तो का'बा बता दिया

*
हम को 'रियाज़' जानते हैं मानते हैं सब
हिन्दोस्तान में धूम हमारी ज़बाँ की है

*

किस किस तरह बुलाए गए मय-कदे में आज
पहुँचे बना के शक्ल जो हम रोज़ा-दार की

*
ख़ुदा आबाद रक्खे मय-कदे को
बहुत सस्ते छुटे दुनिया-ओ-दीं से

*


शोख़ी से हर शगूफ़े के टुकड़े उड़ा दिए
जिस ग़ुंचे पर निगाह पड़ी दिल बना दिया


*
क्यूँ न टूटे मिरी तौबा जो कहे तू साक़ी
पी ले पी ले अरे घनघोर घटा छाई है

*

पीरी में 'रियाज़' अब भी जवानी के मज़े हैं
ये रीश-ए-सफ़ेद और मय-ए-होश-रुबा सुर्ख़

*

था बहुत उन को गिलौरी का उठाना मुश्किल
दस्त-ए-नाज़ुक से दिया पान बड़ी मुश्किल से

*
ये सर-ब-मोहर बोतलें हैं जो शराब की
रातें हैं उन में बंद हमारी शबाब की
*


'रियाज़' एहसास-ए-ख़ुद्दारी पे कितनी चोट लगती है
किसी के पास जब जाता है कोई मुद्दआ' ले कर
*


आलम-ए-हू में कुछ आवाज़ सी आ जाती है
चुपके चुपके कोई कहता है फ़साना दिल का

*



पी के ऐ वाइज़ नदामत है मुझे
पानी पानी हूँ तिरी तक़रीर से
*
निशाना बने दिल रहे तीर दिल में
निशानी नहीं इस निशानी से अच्छी

*
मेरे घर में ग़ैर के डर से कभी छुप जाइए
ग़ैर के घर में छुपे थे आज किस की डर से आप
*
ज़रा जो हम ने उन्हें आज मेहरबाँ देखा
न हम से पूछिए क्या रंग-ए-आसमाँ देखा
*
नासेह के सर पर एक लगाई तड़ाक़ से
फिर हाथ मल रहे हैं कि अच्छी पड़ी नहीं
*
मिरे घर मिस्ल तबर्रुक के ये सामाँ निकला
आस्तीं क़ैस की फ़रहाद का दामाँ निकला
*
कहाँ ये बात हासिल है तिरी मस्जिद को ऐ ज़ाहिद
सहर होते जो हम ने देखे हैं झुरमुट शिवाले में
*
बाग़बाँ काम हमें क्या है वो उजड़े कि रहे
जब हमीं बाग़ से निकले तो नशेमन कैसा
*
कली चमन में खिली तो मुझे ख़याल आया
किसी के बंद-ए-क़बा की गिरह खुली होगी
*
लब-ए-मय-गूँ का तक़ाज़ा है कि जीना होगा
आँख कहती है तुझे ज़हर भी पीना होगा
*
कोई ज़माने में रोता है कोई हँसता है
यहाँ किसी से किसी की सदा नहीं मिलती
*
ग़लत है आप न थे हम-कलाम ख़ल्वत में
अदू से आप की तस्वीर बोलती होगी
*
शेर-ए-तर मेरे छलकते हुए साग़र हैं 'रियाज़'
फिर भी सब पूछते हैं आप ने मय पी कि नहीं
*
हिन्दोस्ताँ में धूम है किस की ज़बान की
वो कौन है 'रियाज़' को जो जानता नहीं
*
रहमत से 'रियाज़' उस की थे साथ फ़रिश्ते दो
इक हूर जो बढ़ जाती तो और मज़ा होता
*
घर में पहुँचा था कि आई नज्द से आवाज़-ए-क़ैस
पाँव मेरा एक अंदर एक बाहर रह गया
*
उन्हीं में से कोई आए तो मयख़ाने में आ जाए
मिलूँ ख़ुद जा के मैं अहल-ए-हरम से हो नहीं सकता
*
कह के मैं दिल की कहानी किस क़दर खोया गया
हैं फ़सानों पर फ़साने मेरे अफ़्साने के बा'द
*
ज़र्फ़-ए-वज़ू है जाम है इक ख़म है इक सुबू
इक बोरिया है मैं हूँ मिरी ख़ानक़ाह है
*
रंग लाएगा दीदा-ए-पुर-आब
देखना दीदा-ए-पुर-आब का रंग
*
है भी कुछ या नहीं मैं हाथ लगा कर देखूँ
हाथ उठाए तो ज़रा अपनी कमर से कोई
*
उठता है एक पाँव तो थमता है एक पाँव
नक़्श-ए-क़दम की तरह कहाँ घर बनाएँ हम
*
मेरी सज-धज तो कोई इश्क़-ए-बुताँ में देखे
साथ क़श्क़े के है ज़ुन्नार-ए-बरहमन कैसा
**
ये मय-कदा है कि मस्जिद ये आब है कि शराब
कोई भी ज़र्फ़ बराए वुज़ू नहीं बाक़ी
*
'रियाज़' तौबा न टूटे न मय-कदा छूटे
ज़बाँ का पास रहे वज़्अ का निबाह रहे
*
हाए ज़ंजीर-शिकन वो कशिश-ए-फ़स्ल-ए-बहार
और ज़िंदाँ से निकलना तिरे दीवाने का

ये क़ैस-ओ-कोहकन के से फ़साने बन गए कितने
किसी ने टुकड़े कर के सब हमारी दास्ताँ रख दी

अब मुजरिमान-ए-इश्क़ से बाक़ी हूँ एक मैं
ऐ मौत रहने दे मुझे इबरत के वास्ते

हाथ रक्खा मैं ने सोते में कहाँ
बोले वो झुँझला के अब मैं सो चुका

हम ने देखा तरफ़-ए-मय-कदा जाते थे 'रियाज़'
इक असा थामे अबा पहने अमामा बाँधे

अज़ाँ का काम चल जाए जो नाक़ूस-ए-बरहमन से
बड़ा ये बोझ उतरे ऐ मोअज़्ज़िन तेरी गर्दन से

ये सुन के आज हश्र में वो बात भी तो हो
हँस कर कहा कि दिन है कहीं रात भी तो हो

एक वाइज़ है कि जिस की दावतों की धूम है
एक हम हैं जिस के घर कल मय उधार आने को थी

लुट गई शब को दो शय जिस को छुपाते थे बहुत
इन हसीनों से कोई पूछे कि क्या जाता रहा

ज़ेर-ए-मस्जिद मय-कदा मैं मय-कदे में मस्त-ए-ख़्वाब
चौंक उठा जब दी मोअज़्ज़िन ने अज़ाँ बाला-ए-सर

क़ुलक़ुल-ए-मीना सदा नाक़ूस की शोर-ए-अज़ाँ
ठंडे ठंडे दीदनी है गर्मी-ए-बाज़ार-ए-सुब्ह

ये कम-बख़्त इक जहान-ए-आरज़ू है
न हो कोई हमारा दिल हो हम हूँ

बहार आते ही फूलों ने छावनी छाई
कि ढूँढता हूँ मुझे आशियाँ नहीं मिलता

इस हज में वो बुत भी साथ होगा
ये सच है 'रियाज़' तो गए हम

'रियाज़' आने में है उन के अभी देर
चलो हो आएँ मर्ग-ए-ना-गहाँ तक

वो बोले वस्ल की हाँ है तो प्यारी प्यारी रात
कहाँ से आई ये अल्लाह की सँवारी रात

इस से अच्छे दश्त-ए-सहरा इस से अच्छे गर्द-बाद
आलम-ए-वहशत में मेरा घर कोई घर रह गया
































































































-रियाज़ ख़ैराबादी