Friday, August 30, 2024

हम दीवानों की क्या हस्ती

हम दीवानों की क्या हस्ती, 

हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले, 
मस्ती का आलम साथ चला, 
हम धूल उड़ाते जहाँ चले। 

आए बनकर उल्लास अभी, 
आँसू बनकर बह चले अभी, 
सब कहते ही रह गए, अरे, 
तुम कैसे आए, कहाँ चले? 

किस ओर चले? यह मत पूछो, 
चलना है, बस इसलिए चले, 
जग से उसका कुछ लिए चले, 
जग को अपना कुछ दिए चले, 

दो बात कही, दो बात सुनी; 
कुछ हँसे और फिर कुछ रोए। 
छककर सुख-दु:ख के घूँटों को 
हम एक भाव से पिए चले। 

हम भिखमंगों की दुनिया में, 
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले, 
हम एक निसानी-सी उर पर, 
ले असफलता का भार चले। 

अब अपना और पराया क्या? 
आबाद रहें रुकने वाले! 
हम स्वयं बँधे थे और स्वयं 
हम अपने बंधन तोड़ चले। 


Bhagwaticharan Verma 

इस जगह प्यार करना मना है

लिख दिया अपने दर पे किसी ने इस जगह प्यार करना मना है
प्यार अगर हो भी जाए किसी को उस का इज़हार करना मना है

उन की महफ़िल में जब कोई जाए पहले नज़रें वो अपनी झुकाए
वो सनम जो ख़ुदा बन गए हैं उन का दीदार करना मना है

जाग उट्ठे तो आहें भरेंगे हुस्न वालों को रुस्वा करेंगे
सो गए हैं जो फ़ुर्क़त के मारे उन को बेदार करना मना है

हम ने की अर्ज़ ऐ बंदा-पर्वर क्यूँ सितम ढा रहे हो यूँ हम पर
बात सुन कर हमारी वो बोले हम से तकरार करना मना है

सामने जो खुला है झरोका खा न जाना 'क़तील' उन का धोका
अब भी अपने लिए उस गली में शौक़-ए-दीदार करना मना है
क़तील शिफाई