बहुत याद करते हैं - तुमसे दूर हो कर ।
क्या ये मेरी मोहब्बत की सदा- तुम तक जाती नहीं ।।
मैं तन्हां हूँ, अकेला हूँ – इस भरी भिंड़ में।
मेरे हालात कुछ ऐसे है, जानकर भी तरस खाती नहीं ।।
मैं और तुम बस रह गए – हम बनते बनते ।
ज़रा सा इकरार और हो गया होता – तो ये दिन ऐसी आँच लाती नहीं ।।
वो तुम थे जो मेरी अंगुलियों में – अंगुली फेरा करती थी ।
जुल्फ गिरा कर मोहब्बत की – कैद कर लिया था, अब वो सब कुछ जताती नहीं ।।
क्या हो गया है शादी के बाद से तुम्हे, मुँह फेर लिया जैसे कि जानती न हो।
खामोश तुम भी कहीं हो, वज़ह पूछता हूँ तो बताती नहीं ।।
अक्सर लड़कियाँ प्यार तो कर जाती है – पर निभाती नहीं ।
डोर किसी और के बंध जाती हैं खामोशी से – अपनी उलझन जताती नहीं ।।
बहुत याद करते हैं - तुमसे दूर हो कर ।
क्या ये मेरी मोहब्बत की सदा- तुम तक जाती नहीं ।।
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