Thursday, May 25, 2023

सहर शायरी

raat aa kar guzar bhi jaati hai

ik hamaari sahar nahin hoti

~Ibn-e-Insha


अपनी भी ज़िंदगी में वो मुक़ाम आएगा

हम सहर पे निकलेंगे और शाम आएगा 


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Gham-e-hasti ka 'asad' kis se ho juz marg ilaaj 

Sham'a har rang mei jalti hai sahar hone tak 


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तन्हाई से लिपटी हुई ख़ामोश सियाह रात

 इस आस में बैठी है कि आएगी सहर भी

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सहर है जो रोज झूटे ख़्वाब दिखाती है

और शाम रोज इंतज़ार में कट जाती है  


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ये दाग़ दाग़ उजाला , ये शब ग़ज़ीदा सहर

वो इंतिज़ार था जिसका ये वो सहर तो नहीं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़


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शब-ए-इंतिज़ार की कश्मकश में न पूछ कैसे सहर हुई

कभी इक चराग़ जला दिया कभी इक चराग़ बुझा दिया

मजरूह सुल्तानपुरी


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