धूप में जलते हैं तब साया बनता है,
बड़े जतन से कोई अपना बनता है,
सारे बिखरे ख़्वाब इकट्ठा करने पर,
एक मुकम्मल तेरा चेहरा बनता है!
~अक्स समस्तीपुरी
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
धूप में जलते हैं तब साया बनता है,
बड़े जतन से कोई अपना बनता है,
सारे बिखरे ख़्वाब इकट्ठा करने पर,
एक मुकम्मल तेरा चेहरा बनता है!
~अक्स समस्तीपुरी
बेर कैसे थे, ये शबरी से पूछो,
श्रीराम से पूछोगे तो मीठे ही कहेंगे।
ज़हर का स्वाद शिव से पूछो,
मीरा से पूछोगे तो अमृत ही कहेगी।
नीरज