Sunday, September 26, 2021

उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है,

चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है 


एक दीवाना मुसाफ़िर है मिरी आँखों में 
वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है चल पड़ता है 

अपनी ताबीर के चक्कर में मिरा जागता ख़्वाब 
रोज़ सूरज की तरह घर से निकल पड़ता है 

रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं 
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है 

उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो 
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है

Wednesday, September 15, 2021

आज भी तेरा दिल मेरे लिए बेकरार हैं.

वादा नहीं कोई तेरा, 
फिर भी इंतज़ार है.

बिछड़ने के बाद भी, 
हमें तुमसे प्यार हैं,

तेरे भी चेहरे की उदासी 
बता रही हैं.

आज भी तेरा दिल, 
मेरे लिए बेकरार हैं.