Monday, June 8, 2020

ज़िंदगी शायरी 4

ज़िंदगी शायद इसी का नाम है 
दूरियाँ मजबूरियाँ तन्हाइयाँ 
- कैफ़ भोपाली

देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से 
हरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से 
- साहिर लुधियानवी

तू कहानी ही के पर्दे में भली लगती है 
ज़िंदगी तेरी हक़ीक़त नहीं देखी जाती 
- अख़्तर सईद ख़ान

गँवाई किस की तमन्ना में ज़िंदगी मैं ने 
वो कौन है जिसे देखा नहीं कभी मैं ने 
- जौन एलिया

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