Monday, April 13, 2020

हालात के क़दमों पे क़लंदर नहीं गिरता

हालात के क़दमों पे क़लंदर नहीं गिरता 
टूटे भी जो तारा तो ज़मीं पर नहीं गिरता 

गिरते हैं समुंदर में बड़े शौक़ से दरिया 
लेकिन किसी दरिया में समुंदर नहीं गिरता
 
समझो वहाँ फलदार शजर कोई नहीं है 
वो सहन कि जिस में कोई पत्थर नहीं गिरता

इतना तो हुआ फ़ाएदा बारिश की कमी का 
इस शहर में अब कोई फिसल कर नहीं गिरता
 
इनआ'म के लालच में लिखे मद्ह किसी की 
इतना तो कभी कोई सुख़न-वर नहीं गिरता
 
हैराँ है कई रोज़ से ठहरा हुआ पानी 
तालाब में अब क्यूँ कोई कंकर नहीं गिरता
उस बंदा-ए-ख़ुद्दार पे नबियों का है साया 
जो भूक में भी लुक़्मा-ए-तर पर नहीं गिरता 

करना है जो सर मा'रका-ए-ज़ीस्त तो सुन ले 
बे-बाज़ू-ए-हैदर दर-ए-ख़ैबर नहीं गिरता 

क़ाएम है 'क़तील' अब ये मिरे सर के सुतूँ पर 
भौंचाल भी आए तो मिरा घर नहीं गिरता

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