होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो,
भूल शूल से भरे वर्ष के वैर-विरोधों को,
होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!
~ सुमित्रानंदन पंत
करें जब पाँव खुद नर्तन, समझ लेना कि होली है
हिलोरें ले रहा हो मन, समझ लेना कि होली है
तरसती जिसके हों दीदार तक को आपकी आंखें
उसे छूने का आये क्षण, समझ लेना कि होली है
हमारी ज़िन्दगी यूँ तो है इक काँटों भरा जंगल
अगर लगने लगे मधुबन, समझ लेना कि होली है
-
सजनी की आँखों में छुप कर जब झाँका
बिन होली खेले ही साजन भीग गया
- मुसव्विर सब्ज़वारी
मुंह पर नक़ाब-ए-ज़र्द हर इक ज़ुल्फ़ पर गुलाल
होली की शाम ही तो सहर है बसंत की
- लाला माधव राम जौहर
बिन होली खेले ही साजन भीग गया
- मुसव्विर सब्ज़वारी
मुंह पर नक़ाब-ए-ज़र्द हर इक ज़ुल्फ़ पर गुलाल
होली की शाम ही तो सहर है बसंत की
- लाला माधव राम जौहर
मौसम-ए-होली है दिन आए हैं रंग और राग के
हम से तुम कुछ माँगने आओ बहाने फाग के
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बादल आए हैं घिर गुलाल के लाल
कुछ किसी का नहीं किसी को ख़याल
- रंगीन सआदत यार ख़ां
मुहय्या सब है अब अस्बाब-ए-होली
उठो यारो भरो रंगों से झोली
- शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
होली के अब बहाने छिड़का है रंग किस ने
नाम-ए-ख़ुदा तुझ ऊपर इस आन अजब समां है
- शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
वो तमाशा ओ खेल होली का
सब के तन रख़्त-ए-केसरी है याद
- फ़ाएज़ देहलवी
तेरे गालों पे जब गुलाल गुलाल लगा
ये जहां मुझ को लाल लाल लगा
- नासिर अमरोहवी
मिरे दिल में उस ने ऐसे तेरा ख़याल डाला
कोरे लिबास पर हो जैसे गुलाल डाला
- रेनू नय्यर
तमाम आब-ओ-हवा में गुलाल बिखरा है
कि रंग लाया है उस के निखार का मौसम
- राशिद अनवर राशिद
यूं रुख़-ए-ज़र्द चमक उठता है आने पे तिरे
जैसे होली में कोई मल के गुलाल आता है
- चरख़ चिन्योटी
नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे, खेली होली !
जागी रात सेज प्रिय पति सँग रति सनेह-रँग घोली,
दीपित दीप, कंज छवि मंजु-मंजु हँस खोली-
मली मुख-चुम्बन-रोली ।
~सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
जब खेली होली नंद ललन हँस हँस नंदगाँव बसैयन में।
नर नारी को आनन्द हुए ख़ुशवक्ती छोरी छैयन में।।
कुछ भीड़ हुई उन गलियों में कुछ लोग ठठ्ठ अटैयन में ।
खुशहाली झमकी चार तरफ कुछ घर-घर कुछ चौप्ययन में।।
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में।
गुलशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में।
~नज़ीर अकबराबादी
हाय रे ! ये माह फ़ाग दिल में लगाये आग,
गोरियों को देख प्रेम उमड़े है मन में।
लगती हैं लैला हीर नजरों से मारें तीर,
बिज़ली सी दौड़ पड़े सारे ही बदन में ।
बन गया में शिकार हाय बैठा दिल हार,
उसकी ही सूरतिया बसी अखियन में।
दिल को नहीं करार हाय होली का है इंतज़ार
रंगों में रंगूँगा तुझे रंगीले सजन में।
~अभिषेक कुमार अम्बर
बृजबाला और गुवाला नन्दलाल के लगे हैं संग,
गड्वन में रंग घोल गेरत वह गोरी रे।
मारत पिचकारी तान-तान के कुंवर कान्ह,
मची धूम धाम नची अहीरों की छोरी रे।
चंग पे धमाल गावे स्वर में स्वर मिला के सखी,
कहता शिवदीन धन्य, आज वही होरी रे।
झूम-झूम झूमे,श्यामा श्याम दोउ घूमें,
अनुपम रंग राचे कृष्ण नाचे यें किशोरी रे।
~शिवदीन राम जोशी
मुखड़ा हुआ अबीर लाज से
अंकुर फूटे आस के।
जंगल में भी रंग बरसे हैं
दहके फूल पलाश के।।
मादकता में डाल आम की
झुक कर हुई विभोर है
कोयल लिखती प्रेम की पाती
बाँचे मादक भोर है।।
~रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
तेरी अँगिया में चोर बसैं गोरी
इन चोरन मेरो सरबस लूट्यौ मन लीनौ जोरा-जोरी
छोड़ि दे इकि बंद चोलिया पकरै चोर हम अपनौ री
‘हरीचंद’ इन दोउन मेरी नाहक कीनी चित चोरी री।
~भारतेंदु हरिश्चंद्र
भरी बहार सुबह धूप
धूप के सीने में छिपे ओ तारों नक्षत्रों
फागुन रस में डूबे हम
बँधे रंग तरंग
काँपते हमारे अंग।
~लाल्टू
कृष्ण श्याम श्यामा संग, देखो सखी होली रंग,
गुवाल बाल चंग बजा नांचत नांच गोरी रे।
मारत पिचकारी अरे भर-भर के रंग लाल,
लाल ही गुलाल लाल, लाल युगल जोरी रे।
होरी के दीवाना को, पकर-पकर कान्हा को,
नांच यूँ नाचावें, नांचे अहीरों की छोरी रे।
कहता शिवदीन राम आनन्द अपार आज,
आज वह तिंवार* सखी, सजो साज होरी रे।
~शिवदीन राम जोशी
खेलूँगी कभी न होली
उससे जो नहीं हमजोली ।
यह आँख नहीं कुछ बोली,
यह हुई श्याम की तोली,
ऐसी भी रही ठिठोली,
गाढ़े रेशम की चोली-
अपने से अपनी धो लो,
अपना घूँघट तुम खोलो,
अपनी ही बातें बोलो,
मैं बसी पराई टोली ।
जिनसे होगा कुछ नाता,
उनसे रह लेगा माथा,
उनसे हैं जोडूँ-जाता,
मैं मोल दूसरे मोली
~सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
होरी खेलत हैं गिरधारी।
मुरली चंग बजत डफ न्यारो।
संग जुबती ब्रजनारी।।
चंदन केसर छिड़कत मोहन
अपने हाथ बिहारी।
भरि भरि मूठ गुलाल लाल संग
स्यामा प्राण पियारी।
गावत चार धमार राग तहं
दै दै कल करतारी।।
फाग जु खेलत रसिक सांवरो
बाढ्यौ रस ब्रज भारी।
मीरा कूं प्रभु गिरधर मिलिया
मोहनलाल बिहारी।।
~मीराबाई
सबके हृदय मे,,प्रेम का,,,,आवेश होना चाहिए
गीत मे संगीत का,,,,,,प्रवेश होना चाहिए
बिन रंग के,,यहां निरा,,सब व्यर्थ है,,ये जान लो,,
जीवन मे,,,सभी रंगों का,,,,,समावेश होना चाहिए।
तेरा रंग तो पहले ही चढ़ चुका हैं इस मन पर ,
ये होली तो तेरे रुखसार को छूने का फकत बहाना भर हैं...!
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