आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
दुनिया तिरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूँ तू चाँद मुझे कहती थी मैं डूब रहा हूँ
~मुनव्वर राना
No comments:
Post a Comment