आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त तुझ से मिलने की आरज़ू की है तेरे जाने के बाद भी मैं ने तेरी ख़ुशबू से गुफ़्तुगू की है!
No comments:
Post a Comment