आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
मानस के कागद पर प्रियतम दो अक्षर का गीत लिखा पहला अक्षर नाम तुम्हारा दूजा अक्षर प्रीत लिखा
अब न कोई आधि-व्याधि अब न कोई साध रही अब न मोह की बन्धन बाधा नदिया यूं निर्बाध बही नाम तेरे की माला पहनी जपने की तू रीत सिखा
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