आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
हज़ारों मंज़िलें पायीं, गुज़रे लाखों सफर। करोड़ों की भीड़ से घिरा हूँ मैं मैं ही मेरा हम-साया मगर।
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