आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
न आज लुत्फ़ कर इतना कि कल गुज़र न सके वो रात जो कि तिरे गेसुओं की रात नहीं ये आरज़ू भी बड़ी चीज़ है मगर हमदम विसाल-ए-यार फ़क़त आरज़ू की बात नहीं
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