आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे, कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते!
कैसे दुत्कार दूं उन पत्थरों को जिन पर बेठकर में सुस्ताया था। याद कर जब में उनसे टकराया था तो तू भी मुस्कुराया था।।
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