आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
मुझे शायर मत कहना दोस्त मैं इन लफ़्जों के कबील कंहा मैं तो बस रोते हुए लिखत हूँ जिन आँसूओ के वो कबील कंहा...
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