आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
दवा गर काम ना आये तो, नजर भी उतारती है, ये माँ है साहब, हार कंहा मानती है!
गुलजार
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