आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
वो मुस्कुरा के मोहब्बत से जब भी मिलते हैं, मेरी नज़र में हज़ारों गुलाब खिलते हैं!
उनके लबों की तबस्सुम देती हैं सुकून मुझको, मिलते हैं जब वो मिलती हैं खुशियाँ मुझको!
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