आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया जाने क्यों आज तेरे नाम पे रोना आया
यूँ तो हर शाम उम्मीदों में गुज़र जाती थी आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
शकील बदायूंनी
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उनको क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया।
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