आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
कितने शीशों की नज़ाकत का भरम खुल जाएगा, इस चमन के फूल को पत्थर न होने दीजिये!
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