आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
अपने मतलब के अलावा कौन किसी को पूछता है, शज़र जब सूख जाये तो परिंदे भी बसेरा नही करते !
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