आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
इंसान उम्मीदों से बंधा हुआ एक जिद्दी परिंदा है, घायल भी उम्मीदों से है, और उम्मीदों पर ही ज़िंदा है।।
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