आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
बंद कर दिए है हमने दरवाज़े इश्क़ के, पर, तेरी याद है कि दरारों से भी चली आती है!
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