आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
हम रूठे दिलों को मनाने में रह गये, गैरों को अपना दर्द सुनाने में रह गये! मंजिल हमारी हमारे करीब से गुजर गई, हम दूसरों को रास्ता दिखाने में रह गयें!
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