आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
अजीब मिठास है मुझ गरीब के खून में भी, जिसे भी मौका मिलता है वो पीता जरुर है!
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